SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 968
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ he 2 प्रातामकथाले धपणेणं सत्थवाहेणं एवं वृत्ता समाना एयमहं पडिसुर्णेति । तणं धपणे सत्वा पंचहिपुत्तेहिं सद्धि अरणि करेइ, करिता, सरगं च करेइ, करिता, सरपणं अणि महेड, महिता अरिंगपाडेइ, पाडित्ता, अरिंग संधुखेड, सक्सित्ता दारुयाइ परिक्खेवेइ, परिवखेवित्ता, अग्गिपजालेड, पजालित्ता, सुंमुमाए दारियाए मंस च सोणियं च आहारेति । ते णं आहारेण अवि द्वत्था समाणा रायगिहं नयर संपत्ता मित्तणाइ० अभिसमणागया तस्स य विउलस्स धणकणगरयण जात्र आभागी जाया या होत्था । तएण से धपणे सत्थवाहे सुसुमाए दारियाए बहूइ लोइयाइ जाव विगयसोए जाए याचि होत्था ॥ सू०८ ॥ टीका- ' aण से' इत्यादि । ततः खलु स धन्य' सार्थवाहः पञ्चभिः पुत्रै सह आत्मपः चिळात ' परिधाडेमाणे २ ' परिधावन् २ = चिलात ग्रहीतुकामस्त स्पृष्ठतोऽनुधावन् 'तण्हाए छुहाए य' तृष्णया क्षुधया च ' सते ' श्रान्त, = मनसा खिन्नः, ' तते ' तान्त = शरीरेण हात', 'परितते' परितान्तः = मनमा शरीरेण च -:तएण से धपणे सत्थचाहे । इत्यादि । टीकार्थ - (ए) इसके बाद (पहिं पुत्तेर्हि सद्धि अप्पछड़े से धणे सत्वा) पांचो पुत्रों के साथ उठा बना हुआ वह धन्यसार्थवाह (चिलाय परिधाडेमाणे २) चिलातचोर को पकड़ ने की इच्छा से उस के पीछे २ बार बार दौडता हुआ, (तण्हाए छुहाए य सते तते परितते नो सचाइए चिलाय चोरसेणावई साहित्यि गतिए) पिपासा और 'तएण से धणे सत्थवाहे' इत्यादि टीडार्थ – ( तण ) त्यारपछी ( प चहि पुतेहिं सद्धि अपट्टे से धणे सत्यवाहे) पाये पुत्रानी साथै छड्डी ते धन्य सार्थवाह ( चिलाय परिधाडेमाणे २ ) ચિલાત ચારની પાછળ પાછળ તેને પક્ડી પાડવા માટે વારવાર દોડતા દોડતાં ( तहाए छुहाए य सते तवे परित ते नो सचाएह चिलाय चोरसेणावइ साहस्थि गिव्हित्तए) तस्स भने लूमधी श्रात थह गये।, जिन्न जनी गये। થા
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy