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________________ ६६८ वाताधर्मका सजीवेहि धहि समुनिरात्तेहि सरेहि समुग्लालियाहि दीहाहि ओसारियाहिं उरुघंटयाहि छिप्पतुरेहि वज्रमाणेहि मह्या महया उक्किहसीहणायचोरफलफलरव समुदरवभूय करेमाणे सीहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिणिक्समइ पडिनिक्स मित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामते एग महं गहण अणुपरिसइ, अणुपविसित्ता, दिवस खवेमाणे चिट्टइ ॥ सू० ५ ॥ टीका - ' तरण से ' इत्यादि । वतः सलुम चितश्रोरसेनापतिः अन्यदा कदाचित् रिपुलम् अशनपानखादिमम्बादिमम् 'उपखनेचा उपस्सार्थ निप्पाय पञ्च चोग्शतानि आमन्त्रयति । ततः पश्चात् स्नात ' कयवलि कम्मे ' कृतवळि फर्मा=कृत बलिकर्म येन सः, काकादीना कृतेदच भोजनोपदारो भो ननमण्डपे तैः पच्चमि चोरशतैः सार्ध ' विउल' निपुलम् = अत्यर्थम्, अशन पान खाद्यस्वान सु च यावत् प्रसन्ना च ' आसाएमाणे ' आस्वादयन् विहरति । पुनथ ' जिमिय Spe " तण से चिलाए चोर सेणावई ' इत्यादि । टीकार्थ - (तएण ) इसके बाद (चोर सेणावई चिलाए) चोर सेना पति चिलात चोर ने (अम्न्नया कयाइ) किसी एक समय (विउल असण पाणखाहमसाइम उवक्खडावेत्ता पचचोरसए आमतेइ - तओ पच्छा पहाए कययलिकम्मे, भोयणमडवसि तेहिं पर्चाहिं चोरस एहिं सद्धिं विल असण पाण ग्वाइम साइम सुर च जाव पसण्ण च ओसाए माणे ४ विहरह, जिमियमुत्तत्तरागण ते पच चोरसए बिउलेण वृवपुष्पगधम तपण से चिलाए चोरसेणावई इत्यादि -- टीअर्थ - (तरण ) त्यारपछी ( चोरसेणावई चिलाए ) ये २ सेनापति थिसात थोरे (भन्नया कयाइ) असे ते ( विउल असणपाणसाइमसाइम उवक्सडावेत्ता पच चोरसप आमतेइतओ पच्छा पहाए क्यबलिकम्मे, भोयण खाइम साइम सुर वसि तेहिं पचहिं चोरसहि सद्धिं विउल असण पाण चाय पणच आसाए माणे४ विहरइ, जिमिय भुनुत्तरागए ते पच चोरसए वि वयासी) ण धूव पुप्फगधमल्लाल कारेण सकारेइ, सम्माणेइ, सकारिता सम्मानित्ता"
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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