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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १७ कालिकद्वीपगत सकीणश्विवक्तव्यता ६११ 'जीन ' इति प्रसिद्धानाम्, मलयाना च= मलय देशोत्पन्नवस्त्रनिशेषाणाम्, 'मसूराणय' मरकाणा = नखादिनिर्मित वृत्ताकारासन विशेषाणाम्, 'सिलावट्टाण य' शिलापट्टान = पट्टा कारचिकणशिलाना यान्त् हसगर्भाणा = इसः चतुरिन्द्रियकृमिविशेषः, गर्भः = तन्निर्वर्तित कोसि कारोरुतरूपः, तन्मयनत्राण्यपि हंसगर्भाणीत्यु मलयाण य मसूराण य सिलावहाण य जाव हसगभाण य अन्नेसिं च फासिंदियपाउग्गाण दव्वोण सगडीसागड भरेति ) इसी तरह अनेक कोष्टपुट को सुगंधित द्रव्य विशेषों को केतकीपुटरो को सुगधित पुष्पों यावत् एलापुढो को - इलायचियों को, उखीरपुटों को खश के समुदाय को - कुकुमपुटों को तथा और भी अनेक प्राणेन्द्रिय को तृप्ति कारक द्रव्यों को उन लोगो ने गाडी और गाडो में भरा। बहुत सी खाड, बहुत से गुड बहुत सी शर्करा - मिसरी बहुत सी मत्स्यण्डी - कालपी मिसरी बहुत से गुलकद, बहुत से पद्मपाक को तथा और भी जिह्वाइन्द्रिय को तृप्ति करने वाले द्रव्यों को उन लोगों ने गाड़ी और गाडों में भरा। इसी तरह स्पर्शन इन्द्रिय को आनददेने वाले कोयविको को - रूई कपास से भरे हुए प्रावरण विशेषों को रजाइयों को कम्पलों को- रत्न कम्पलों को प्रावरण को चद्दरो को नवलको को ऊन के बने हुए पलेंचों को जीनो को मलयदेश के बने हुए वस्त्रों को, मसूरकों को वस्त्रों से बनाये हुए गोलाकार आसनों को शिलापट्टो को पट्टाकार चिकनी M Matte मलयागय मयूराण य सियानहाण य जाव हगवभाग य अन्नेसिं च फार्सिदिपाउरगाण दव्वाण सगडी सागड भरेंति ) આ પ્રમાણે ઘા કષ્ટ પુઢકાને સુગધિત દ્રવ્પ-વિશેષાને, કેતકી પુટાને કેવડાના પુષ્પાને યાવત્ એલાપુટાને, એલચીઓને, ઉરીર પુટોને-ખશના સમુાયાને, કુકુમ પુટોને તેમજ બીજા પણ ઘણા ાણુન્દ્રિય ( નાક ) ને તૃપ્તિ પમાડનારા દ્રવ્યેાને તેઓએ ગાડી અને ગાડાઓમાં ભર્યાં - ખહુ જ પુષ્કી प्रभाणुभा भाड, गोम, साउर मिश्री, भत्त्य डी सी मिश्री, (थी लतनी भा४२) ગુલકન્દ, પદ્મપાક તેમજ ખીજા પશુ વણા જીદ્દાઈ ઇન્દ્રિય (જીભ) ને તૃપ્તિ આપ નાર દ્રવ્યેાને તે લેાકાએ ગાડી અને ગાડામા ભર્યાં આ પ્રમાણે સ્પર્શેન્દ્રિયને સુખ આપનારી વિવકાને રૂથી ભરેલા પ્રાવરણુ શેષાને-રજાઇઓને, કામ जोने, रत्न जमणाने, आवराने, शाहरोने, नवसोने, अनयी मनाववाभा આવેલા પવેચાએને-જીને ને-મલય દેશના વોને, મસૂરકાને-વસ્ત્રો વડે બનાવવામા આવેલા ગેળ આકાર આસનેને, વિલાપટ્ટાને-પટ્ટના આહારની
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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