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________________ ममगारघामृतविणाटीका अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् ५२९ खलु देवानुप्रियाणाम् ऋद्धिर्यारत् पराक्रमः-तत्-तस्मात् क्षमयामि ग्वल हे देवा नुमियाः । यावत् क्षमन्तु खलु यावर नाह भूयो भूय' एव करणतया-पुनरेव नवरिप्यामि, इति कृत्या-इत्युक्त्वा-'पनलिबुढे' प्रातलिपुट -सयोजितकरतलद्वयः पादपतितः कृष्णस्य वासुदेवस्य द्रौपदी ' साहत्थि ' स्वहस्तेन, उपनयति । ततः खलु स कृप्णो वासुदेव पद्मनाभमेवमनादीत-ह भोः । पद्मनाम । अप्रार्थितमार्थित ! हे मरणवाटक । ४ किं खल व न जानासि मम भगिनी द्रौपदी देवीमिहद्दव्यमानयन, 'त' -तस्मात 'एवमपि गए। एवमपिगते अनेन प्रकारेण शरण प्राप्ते सति, नास्ति ते तब मइयमिदानीमिति कृत्वा प्रति सिने यति । प्रतिपिसृज्य द्रौपदों देवीं गृह्णाति, गृहीत्वा रथ दूरोहति आरोहयति देखली, गवा पराक्रम देन लिया। हे देवानुप्रिय । में अपने अपराध की क्षमा मांगता हैं। (जाव खमतु) यावत् आप मुझे क्षमा दें। (ण जावणार मुज्जो २ एव करणाए) अर मै पुनः ऐसा नहीं करूगा। (त्ति कटु पजरिबुडे पायवडिए कण्हस्स वासुदेवस्ल दोवइ देवि सा हात्य उवणे) इस प्रकार का कर वह दोनों हाय जोड उन कृष्णवा सुदेव के पैरों पर गिर पडा और अपने हाथ से ही उसने फिर उनके लिये दोपदी सौ पदी । (तएण से कण्हे वासुदेवे पउमणाम एच वयासी है भो पउमणामा। अपवियपस्थिया ४ किण्ण तुम ण जाणासि मम मागणि दोवड देविड व माणमाणे त एवमविगए, जस्थिते ममारितो इयाणि मयमस्थिति कट पउमणाम पडिविसउजेड, पडि साजता दोवद देवि गिपड, गिरिता रह दुख्हेइ, दुरूहित्ता जेणेव એ દ્ધિ જોઈ લીધી છે, યાવત તમારૂ પરાક્રમ પણ મેં જોઈ લીધું છે કે हानुप्रिया भा। अ५२५ मास क्षमा मा छु (जाव समत) यावत् " भन क्षमा ४२ (ण जाव जाह मुम्जो २ एम करणाए) व श " ३६५ ना बिटट पजलिवडे पायवडिए कण्हाम वासदेवरस दावइ दवि साहस्थि उडणे) मा प्रभारी हीन ते मन थनीने કૃણ-વાસુદેવના પગમાં આળેટી ગયે અને ત્યારપછી તેણે પિતાના હાથથીજ દ્રિૌપદી તેમને આપી દીધી (तएण से कण्हे वासुदेवे पउमणाम एप बयासी-ह भो । पउभणाभा ! अपात्ययपत्थिया ४ मिष्ण तुम ण जाणासि मम भगिणिं दोबड देवि इह, इन्त्र माण त एवमपि गए. पत्थि ते ममाहितो इयाणि भयमथि तिर पउमपाटसिज्जेड पडिसिज्जित्ता दोवइ देवि गिण्डइ, गिण्डित्ता रह दुम्हेइ, सय ६७
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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