SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 728
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तामा टीका-'तरण से इत्यादि । तत. गल रा पानाम: 'परमाउय' बम्पर पृत-सैन्यनायक पादपति, गन्दपित्या पयमानीन्-क्षिप्रमेर-शीघ्रमेव मो देशानुप्रिय ! 'आगिसेषाभिषेप प्रगान हस्तिरत्न' पटिरपेह' प्रतिक ल्पय मुसजित पुरू, तदनन्तर न स पायात मन्नु "सायरियउवदेममा विकप्पणाविगप्पेहि " छेकाचार्योपदेशमतिविपनापिकल्पा-तत्र छका-निपुणः, आचार्य:-क्लाशिक्षक, तस्योपदेशाद् या मवि 'दिस्तस्या किल्पना-विचारणा, तज्जनितो रियल्प -विशिष्ट सनाशक्तियेगा तः, 'जाप उप्रणे' यावद् उपत - ताण से पउमणामे इलादि । टीपार्थ-(तएण) उसके बाद (से पउमणाने) उन पद्मनाभ राजा ने (पलवाउय सद्दावे ) अपने सेन्य नायक को बुलाया (महावित्ता) और धुलाकर फिर उनसे (ए चयासी) इस प्रकार करा-(विप्पामेव मा देवाणुप्पिया! आभिसेक रत्विरयण पडिकप्पेर) हे देवानुप्रिय । तुम शीघ्र ही प्रधान हस्तिरत्न को सुसज्जित करो। (तयाणतर च ण स पलवारा छेयायरिय उवदेसमह विरुप्पणा विगप्पेहि निउणेहि जाव उवणेइ) इसके बाद उस सैन्य नायक ने निपुणफला शिक्षक के उपदश से प्राप्त बुद्धि की कल्पना से उत्पन्न एई है विशिष्ट रचना की शक्ति जिन्हों को ऐसे मनुष्य से कि जो शोभा करने में अत्यन्त निपुण थे उस हस्तिरत्न को सुसज्जित करवाया। जब उन्हो ने उस हस्तिरत्न को चम कीले निर्मल वेप से शीघ्र परिवस्त्रित-करदिया। वनाच्छादन द्वारा तएण से पउमणाभे इत्यादि 2014-(तएण) त्या२५छी (से पउमणाभे) पानाम शलमे (बलवालय सदावेइ) पताना सैन्य नायने मसान्यो (सहाविता )सनेमासापान तन (एव वयासी) मा प्रमाणे छु (सिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसक हत्थिरयण पडिकप्पेह) देवानुप्रिय! तमे सत्परे प्रधान स्त न सुस । ( तयाण तर च ण से बलवाउए छेयायरियवदेसमइविकपणा विगप्पेहि निउणेहि जाव उनणे) यारपछी सैन्य नाय निपुट xeशक्ष કના ઉપદેશથી જેમણે વિશિષ્ટ રચના માટે બુદ્ધિ તેમજ કપના શક્તિ મેળવી છે, તેમજ શ્રુગાર કલામાં જેઓ અતી ચતુર છે તેવા માણસે વડે હસ્તિરત્નને સુસજિજત કરાવ્યું જ્યારે સત્વરે તેમણે તે હરિત્નને ચમકતા નિર્મળ વેષથી પરિવઅિત કરી દીધે-વઆચ્છાદન વડે આછાદિત * સુખ
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy