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________________ मनगारधर्मामृतवर्षिणी टो० स० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् ४७५ दोवइ देवी ण णजइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किन्नरेण वा किं पुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा णीया वा अवक्खित्ता वा ', इच्छामि णं ताओ । दोवईए देवीए सव्वओ समता मग्गणगवेषणं कथं, तएण से पंडुराया कोडुंबियपुरिसे सदावेइ सद्दावित्ता एवं व्यासी- गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया । हत्थिणाउरे नयरे सिघाडगतियचउक्कचच्चरमहापहपहेसु महयार सद्देण उग्घोसेमाणा २ एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया 1 जुहिहिस्स रण्णो आगासतलगसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी ण णजइ केइ देवेण वा दाणवेण वा किन्नरेण वा किपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्त्रेण वा हिया वा नीया वा अवक्खित्ता वा तं जो णं देवाणुप्पिया । दोवइए देवीए सुई वा जाव पवित्ति वा परिकहेइ तस्स णं पंडुराया विउल अत्थसपयाण दाणं दलयइ तिक्हु घोसणं घोसावेह२ एयमाणत्तिय पञ्चपिणह, तरणं ते कोडुवियपुरिसा जाव पच्चपिणंति, तणं से पराया दोवईए देवीए कत्थइ सुइ वा जाव अलभमाणे कोती देवी सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुम देवाणुपिया | वारवइ णयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एयमट्ट णिवेदेहि कह णं पर वासुदेवे दोवइए भग्गणगवेसणं करेजा अन्ना न नज्जइ दोवइए देवीए सुती वा खुतीं वा पवतीं वा उवलभेज्जा, तपण सा कोंती देवी पडुरण्णा एव वृत्ता समाणी जाव पडिसुणेइ पडिणित्ता व्हाया कयवलिकम्मा हरिथखध
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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