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________________ खल्ल तुम देवाणुप्पिया! मम पव्वसंगइएणं देवणं जंबूदी वाओ २ भारहाओ वासाओ हथिणापुराओ नयराओ जुहिष्टि ल्लस्स रपणो भवणाओ साहरिया त मा णं तुम देवाणुप्पिया) ओहय० जाव झियाहि, तुमं मए सद्धि विपुलाई भोगभोगाई जाव विहराहि, तएणं सा दोवई देवी पउमणाभं एव वयासी -एव खलु देवाणुप्पिया। जंवदीने दीवे भारहे वासे बारवइए णयरीए कण्हे णाम वासुदेवे ममप्पियभाउए परिवसइ, त णे से छह मासाण मम कूब नो हव्वमागच्छइ तएणं अह देवा णुप्पिया। जं तुम वदसि तस्स आणाओवायवयणणिदेसे चिहि स्लामि, तएणं से पउमे दोवईए एयम पडिसुणित्ता२ दोवई देवि कण्णंतेउरे ठवेइ, तएणं सा दोवई देवी छट्ट छट्टेणं आन विखत्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणंतवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाण विहरइ ॥ सू० २६ ॥ टीका-'तएण सा' इत्यादि । तत स्खलु सा द्रौपदी देवी ततो मुहूतान्तर मतियुद्धा जागरिता सती तद् भवनम् अशोस्वनिका च ' अपञ्चभिजाणमाणा अप्रत्यभिजानन्ती भवनादिकमपरिचित जामन्ती एवमवादीद-नो खलु अरमान -तएण सा दोवई देवी इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके बाद (सा दोवईदेवी) वह द्रौपदीदेवी (ताओं मुहत्ततररस पडिघुद्धा समाणी) १महत के बाद जगी सो जग कर उसने ( त भवण असोगवणिय च अपञ्चभिजाणमाणी एव वयासा. उस भवन को एव उस अशोकवाटिका को अपरिचित जानकर अपने मन में ऐसा विचार किया-नो खल अम्ह एसे सएभवणे, शाखा तण्ण सा दावई देवी इत्यादि ।। साथ-(तएण) त्यारपछी (सा दोवई देवी) द्रौपदी वी (ताओ मुहुत्तरस पडिबुद्धा समाणी) मे भुत पछी भने का तरे ( भवण असोगवाणिय च अपञ्चभिजाणमाणी एव वयासी) ते लपन मन त मा વાટિકાને અપરિચિત જાને પિતાના મનમાં આ જાતને
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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