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________________ Aniपादन मतदतस्मात् पल्पद में पुत्रि! ' या' गपापा-पपु दिसेगु अपेषु दिनेषु इत्यर्थः स्वयंवर पगामि-पारगामि माया मम्पटिसेच मनु त 'दिग्णसय परा' तयरामनियत इति पर, पन्यमा भय रतः पयवर, स दत्त कन्याया पित्रादिना गस्पै । दत्तम्यरा नायितीनि गाः । 'दत्तस्त्रय वरा' इचिपद व्याक्षाण पर्यात-जण तुम' इत्यादि । य पलु व स्वयमेव रा जान वा युवराज पा रिप्यसि, स सलु तर म भरियति' इविक्रवारयुपत्वा तामिरिष्टामिर्याय माम्भिरावासपति,गाधाम्य प्रनिधिमर्जयति ।। मू०१६। मूलम्-तएण से दुवए गया दूयं सदावइ सदावित्ता एवं वयासी-गच्छ ण तुम देवाणुप्पिया । वारवइ नयरि तत्थ ण तुम कण्ह वासुदेवं समुदविजयपामोरखे दस दसारे बलदेवपामुक्खे पचमहावीरे उग्गसेणपामोरसे सोलसरायसहस्से पज्जुण्णपामुक्खाओ अधुटाओकुमारकोडीयोसवपामोरखाओ अज्जयाए सयवर विरयामि, अजयाए ण तुम दिण्ण सयवरा जपण तुम सयमेव राय वा जुवराय चा वरेहिसि सेण तव भत्तारे भविस्सह त्ति कटु ताहिं इटाहिं जाव आसासेइ, असासित्ता पटिविसज्जेह) इस लिये हे पुत्रि ! मैं थोडे ही दिनों में तुम्हारा स्वयवर करवान वाला हूँ। तुम इन दिनों मे दत्तस्वयवरा हो जाओगी, सो तुम जिस राजाको या युवराज को अपनी इच्छानुसार वरोगी वही तेरा भता बन जायगा । इस तरह कहकर राजा ने अपनी पुत्री को इष्ट आदि विशेषणो वाली वाणी से आश्वासित किया और फिर आश्वासित करके उसे वहां से भेज दिया। सू० १६॥ वन पर्यन्त म थया ४२शे ( त ण अह पुत्ता ! अज्जयाए सयवर विर यामि, अज्जयाए ण तुम दिग्णसयवरा जण्ण तुम सयमेव राय वा जुवराय या वरेहिसी से ण तर भत्तार भविस्सइ, ति कटु ताहि इटाहिं जाव आसासेइ आसासित्ता पडिविसज्जेइ) युनि! था। हिसामा हु तमा। भाट સ્વયે વર કરવાને છું ત્યારે તુ ય વરમા દત્ત સ્વય વરા થઈ જશે જે રાજા કે યુવરાજને તું તારી પસંદગી આપશે તેજ તારા પતિ થશે આ પ્રમાણે કહીને રાજાએ પિતાની પુત્રીને ઈષ્ટ વગેરે વિશેષણોથી યુક્ત વચને વડે આશ્વાસનથી આશ્વાસિત કરીને તેને ત્યાંથી વિદાય કરી છે સત્ર૧૬
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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