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________________ मामाचा २५० गतीति • ' 1 ततः सा दासपेटी सागरदास्य सारस्य समीप योजना योध्या। वत उस मागचा 'समये रामाप्त = उद्विग्नः सन् यौन परामगृह तोपगति उपागत्य युगारि दारिम नियि निवेश्य एवमादीन् भो | पुरा पूर्वमत्रेषु हे ' पोराणाण पुगणानाम् = अतीतकाल नाना यातुमत्र गाउनेद बोध्यम् -' दुनिगाण दुष्परताना पानाम् पाग फरव देसा तप में समझ गई कि परया से चला गया है । इम प्रकोर में चिन्ता में पड़ रही हूँ। कुमार की सपा को सुनकर दामबेटी नेमी समय से वापस आकर माग्दत्त को इस पान की खपर दी -" इस प्रकार यह पूर्वक पाठ यश लगा देना चाहिये - (तएण से सागरदत्ते तव सभते समाणे जेणेव बामहरे तेन उवागच्छ वागा समापि दारिय अके निवेश, निवेमित्ता एव वयामी, अहोण तुम पुत्ता पुरा पोरागाण जान पच्चणुग्भमागी विहरसित माण तुम पुत्ता ओमण जान शिवारि-तुम णं पुत्ता मम महाणमसि विपुल असण४ जहा पुहिला जान परिमाणमाणो विहराहि) उसके बाद वह साग रदत्त पहिले जैसा उद्विग्न चित्त होकर जहा या सगृह या वहा गया। वहाँ जा कर उसने सुकुमारिकादारिका को अपनी गोद में बैठा लिया और बैठाकर कहने लगा- हे त्रि । तुमने परिले भनों में जो दुवोर्ण दुष्पाराकान्त, (कठिन ताई से भोगने योग्य एव कृत ज्ञानावरणीय आदि अशुभ कर्म उपार्जित જોયુ ત્યારે મને ચાક્કસપણે ખાત્રી થઈ ગઈ કે તે અહીંથી ચાલ્યે! ગયા છે મા રીતે క్ర ચિંતામા પડી છુ . સુકુમારિકાની આ વાત સાભળીને દાસીએ તરત જ સાગરદત્તને ખબર આપી આ રીતે અહીં પહેલાના પાઠ જાણી લેવા જોઈ એ तण से सागरदत्ते तत्र समते समाणे, जेणेन त्रासहरे तेणेव उवागच्छर, उवाग 'च्छित्ता मालिय दारिय अ के निवे सेइ, निवेसित्ता एक वयासी अहो ण तुम पुत्ता पुरा पोराणाणं जाव पच्चन्भनमाणी विहरसि त माण तुम पुत्ता ओडयमण जात्र झियाहि-तुमण पुत्ता मम महाणससि विपुल असण ४ जहा पुट्टिला जाब परिभाष माणी विहराहि ) 1 ત્યારપછી સાગરદત્ત પહેલાની જેમ વ્યાકુળ ચિત્તવાળા થઈને જ્યા વાસ ગૃહ હતું ત્યા આવ્યે ત્યા આવીને તેણે સુકુમારિકા દ્વારિકાને પેતાના ખેાળામા બેસાડી લીધી અને એસાડીને કહેવા લાગ્યા કે હૈ પુત્ર! તે પહેલા ભવમા જે કંઈ દુશ્રીણું, દુપ્પુરાકાત અને કૃતજ્ઞાનાવરણીય વગેરે માઁ ઉપા
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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