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________________ २२८ भातापर्मकणारे दृष्ट्वा एपमादीत् ' इति का भागमन गाया यापद-आतेप्यान ध्यायति ।। गु० ११ ॥ मूलम्-तएणं सा भद्दा काल पाउ० दासचडि सहावेइ सदावित्ता एवं वयासी जाव सागरदत्तस्स एयमह निवेदेइ, तपणं से सागरदत्ते तहेब संभते समाणे जर वासहरे तेणेव उवा गच्छइ उवागच्छित्ता सूमालिय दारिय अक निवेसेइ निवेसित्ता एवं वयासी-अहो ण तुम पुत्ता! पुरा पोराणा णं जाव पचणुभवमाणी विहरसि त मा ण तुम पुत्ता । ओहयमण जाव झियाहि तुम ण पुत्ता मम महाणससि विपुल असण? जहा पुहिला जाव परिभाएमाणी विहराहि, तएण सा सुमालिया दारिया एयम पडिसुणेइ पडिसुणित्ता माहणससि विपुल असणं जाव दलमाणो विहरइ ।। सू०११ ॥ टीका-'तएण सा' इत्यादि । ततः खलु सा भद्रा सार्थवाही-मुकुमारिका दारिकाया जननी 'कल्ल' कल्ये द्वितीय दिवसे प्रादुः प्रभाताया रजन्या यावददेखकर पल ग से उठी । उठकर उसने उस दमकपुरुपकी मार्गणा एव गवेषणा की। उसमें उसने वासगृह के द्वार को सुला हुआ देखा। देख कर उसने विचारा कि वह दमक पुरूष अब चला गया है। ऐसा सोचकर वह अपहत मन. सकल्प होकर यावत् आत यान करने लगी।सू०११॥ 'तएण सा भद्दा कल्ल ' इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके बाद (सा भद्दा कल्लं पाउ० दासचेडि શા ઉપરથી ઊભી થઈ ઊભી થઈને તેણે તે દરિદ્ર માણસની શોધ ખોળ કરી તેણે વિચાર કર્યો કે તે દરિદ્ર માણસ તે જતો રહ્યો છે આ રીતે વિચાર કરીને તે અપહતમન સંકલ્પ થઈને યાવત આર્તધ્યાનમાં ડૂબી ગઈ છે સૂત્ર ૧૧ છે 'तपण सा भद्दा कल्ल ' इत्यादि an-(तएण) त्या२४ (सा भद्दा कल्ल पाउ० दासचेडिं. . सदा
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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