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________________ २२१ मानापमंकयाह 'भरिया' भरिया भाग्यामपि भाग्यवादी भरिष्यमि । यतः खन्द्रसमपुरुषः मागसमेत प्रतियोरिति प्रतिश्रुत्य मारिया दारिया सात मायदाखिया सार्व 'तरिगसि' तत्ये= यनीये 'निपनि उप । न समक पुरुष गुहमारिकाया इम= पूर्वोक्तम् एकम्परम् अहम् पमिदे' प्रतिसंवेदयति मत्यनुगर विशेष पयासागरस्य पवन सोध्यम्, यावत् अनादि व्यम् - पानां स्पर्शादिष्यनिष्टतर उद स्पर्श झाल्या सागरदारपद्मय पुरुषोऽपि ता गुगुमा मावा, शयनीयादतिष्ठति, अभ्युत्थाय रामगृहाद नियति, निर्गत्य फुटि 4 मनोज्ञ एवं मनोम है। मैं अपनी हम पुत्री को तुम्हे तुम्हारी भार्या के रूप में प्रदान करता हूँ (भरिया भएओ भविज्जसि, तरणं से दमग पुरि से सागरदन्तस्म मह परि०२ समालिया दारिया सर्दिवास घर अणुपचिस, अणुपविसित्ता समालिया रिया सहि तरिगंसि निज्जइ ) इस भाग्यशालिनी से तुम भी भाग्यशाली बनजाओगे । दमकपुरुष ने सोगरदत्त के इस कानरूप अर्थ को अगीकार कर लिया, और फिर वह उस सुकुमारिका दारिका के साथ वासगृह में प्रविष्ट हुआ। वहा जाकर वह उस सुकुमारिका दारिका के साथ साथ एक ही पलंग पर बैठ गया- मोगया (तणं से दमगपुरिसे सूमालियाए इम एयाख्व अगफास पडि सर्वेदेव, सेम जहा सागररस जाय सयणिज्जाओ अन्भुट्टे, अभुट्टिता वासघराओ निग्गच्छर, निच्छित खडमल्लग અને મનેામ છે હું મારી આ પુત્રીને તમને તમારી પત્નીના રૂપમાં અપું છુ भद्दियाए भद्दओ भनिज्जसि, तएण से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयम पडि० २ सूमालियाए दारियाए सद्धिं वासघर अणुपरिसर, अणुपविसित्ता सुमालियाए दारियाए सद्धि गिसि निज्जइ ) આ ભાગ્યશીલાથી તમે પણ ભાગ્યશાળી થઈ જશે તે દરિદ્ર પુરૂષ સાગરદત્તની એ વાતને સ્વીકારી લીધી અને ત્યારબાદ તે સુકુમારિકા દ્વારિકાની સાથે વાસગૃહમા પ્રવિષ્ટ થયેા ત્યા જઈને તે દરિદ્ર માસ સુકુમારા દાદર કાની સાથે એક જ શય્યા ઉપર બેસી ગયા (तएण से दमगपुरिसे युमालियाए इम एयारूत्र जगफास पडिसवेदेइ, सेस जहा सागरस्स जान सयनिज्जानो जन्भुट्टे, अमुट्ठित्ता वासघराओ निम्ग च्छइ निरंगच्छित्ता खडमल्ल्ग खडघडगं च गहाय मारामु के ज "
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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