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________________ १७६ ___पालामा मच्छेसु उववजाइ, तत्थ दियण सत्यनिमा दाहयातीप दोच्चंपि अहे सत्तमी पुटपीप उक्कोस तेजीसमागरोवमट्रिईएसु नेरहामु उमरजई, साणं तओस्तिो जाव उन्वद्वित्ता तच्चपि मन्छेसु उन्ना तस्य पिय णं सत्ययज्झा जाव काल फिच्चा दोन्चपि छट्ठीप पुढवो उस्कोमेणं० तओऽणंतर उन्नहित्ता मच्छेसु उरगमु पव जहा गोसाले तहानेयव्व जाव रयणप्पभाओ सत्तसु उनवन्ना तओ उज्व. द्वित्ता जाई इमाइ राहयर रिहाणाइ जाव अदुत्तरं च णं खर बायर पुढविकाइ यत्ताते तेसु अणेगसतसम्स खुत्तो ॥सू०६॥ टीका-'साण' त्यादि।सा-नागो ग्रामगी पलु तव पठया पृथिव्या अनन्तरम् आयुर्मपस्थितिक्षये गति ' उव्यट्टित्ता' उदय-निम्मत्य मत्स्येपूपमा, वन खलु मत्स्यभवे सा 'सत्यमा' शस्त्रविद्धा 'दाहवाकनीए' दाइव्युत्ता न्या-दाहोत्पत्त्या, काठमामे कामयाऽघ मातम्या प्रदिव्योमुत्कटतस्त्रयस्त्रिश सागरोपमस्थिति केभु' नेहपुनरयिकेपु उत्पन्ना । सा सल तत'-सप्तम्या: पृथिव्याः अन तरमुवयं द्वितीयवारमपि मत्स्येयूत्पयने । तनापि च खलु शख 'सा ण तओ' इत्यादि। टीकार्थ-(सा) वह नागी (तोऽणतरसि) उस उट्ठी नरककी भन्न स्थिति समाप्त होने पर ( उपद्वित्ता ) वहा से निकली-और निकलकर ( मच्छेतु उववन्ना तत्थण सत्यवमा दावश्कतीए कालमासे काल फिच्चा अहे सत्तमीए पुढवी उकोसा तेनीस सागरोबमहिइण्ड नेरइएसु उववन्ना, सा ण ततोऽणतर उपद्वित्ता दोच्चपि मन्छेमु उवव ‘सा ण तओ' इत्यादि सार्थ-(सा) ते नमश्री (ओत्तरसि) a sी न२४ी लपश्थिात पूरी या ा ( उअद्वित्ता ) त्याशी नीजी अने नागीन (मच्छेसु उयवना रात्थ ण सत्याज्झा दाह वकतोए कालमासे काल किच्चा अहे सत्तमीए पुढवीए उक्शेगाए तत्तीस मागरोनमहिइए नेरहएसु उववभा साण उपवजह)
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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