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________________ हाताधर्मsaet यूय खल हे देवानुपिया ! मम मानिदेशे महना-महता शब्दन उद्योपयन्तार एव दत-" एते खलु हे देशानुमिया. ! ते इमो नदिफलासाः यदर्थ, पूर्वर पदिष्टम् क्रष्णा यानत्-गनो छायगा, तर यो सर हे देवानुपिया. 1 एतेषी नन्द्रिफलाना घृक्षाणा मूलानि का फन्दानि मा पुगिसो वा, पागि वा, फलानि वा, यावत्-तानि मूलान्दादीनि त जीरिता “यपरोपगन्ति, तत् मा खल यूय ' जार' या पत्-तेरा मुकन्दादीनि मा आहारयत, मा च तेपा गयास विश्राम्यत स्न्तुि तान दर-दरेण-दत पर 'परिहरमाणा' परिहरन्त बजेयन्त तीन बार घुलाया-धुलाकर उसने पेसा करा-हे देवानुप्रिया! तुम मेरे सार्थ निवेश में जाकर जोर २ से ऐमी घोपणा करो-कि हे देवानुप्रियो जिन नदिफल वृक्षों के विपत्र में पहले सूचना दी गई है-वे येही कृष्ण यावत छाया से मनोज नदि फल वृक्ष है। त जो ण देवाणुप्पिया। पुरसि गंदिफलाण वखाण मूगणिया कद० पुष्फ० तय० पत्तः फल जाव अकोले चेव जीवियाओ वगेवेइ, त माण तुम्भे जोर दूरे रेण परिहरमाणा वीसम माण अकाले चेव जीवियाओ वरोविस्तइ, अ न्नेसि सकग्वाण मूलाणि यजाव बीसमहत्ति की घोमण"जाव पञ्च पिणति ) इस लिये हे देवानुप्रियो । तुम लोग में से कोई भी व्यक्ति इन नदिफलवृक्षोके नरोको, कदोंको, पुष्पोंको, छालोंको, फलोंको नहीं खावे और न वह इनकी यामे विश्राम ही करे-नहीतो वह अकालमें ही कालावलिन अर्थात् मर जावेगा हो जावेगा। इस लिये इन्हे बहुत दूर छोडकर दूसरी जगह तुम लोग विश्राम करो इससे जीवन से रहित મારા સાથે નિવેશમાં જઈને મેટેથી તમે આ પ્રમાણે પણ કરો કે છે દેવાનુપ્રિયે ! જે નદિફળ વૃક્ષોના વિષે પહેલા તમને જાણ કરવામા આવી હતી તે એજ કૃષ્ણ તેમજ છાયાથી મને લાગતા નદિફળ વૃક્ષો છે (त जो ण देवाणुप्पिया! एएसि णदिफलाण रुक्खाण मूलाणि वा कद पुप्फ० तय० पतफल जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेइ त माण तुभे जाव दर रेण परिहरमाणा वीममह,माण अकाले चेव जीवियाओ ववरोविस्सइ अन्तेसि रुकवाण मूलाणि य जार बीसमहत्ति कट्टु घोसणं जाव पच्चप्पिणति) [, એટલા માટે હે દેવાનુપ્રિયે! તમારામાંથી કોઈ પણ માણસ ને દિફળ વૃક્ષના મૂળને, કદોને, પુષ્પને, છાલને, ફળને ખાય નહિ અને તેમની યામાં પણ વિસામો લે નહિ, નહિતર તે અકાળે જ મૃ૧છે એટલા * એમનાથી ખૂબ જ દૂર રહીને વિસામો લેશે તેથી ?'', કે .
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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