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________________ नगरर्मामृतपिणी टीका २०२ ६०१ १०१ कालीदेवोवर्णनम् ७é५ तणं सा कालीदेवी आहुणोत्रवण्णा समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए जहा सूरियाभो जाव भासामण पज्जतीए । तएणं सा कालीदेवी उन्हं सामाणियसाहस्तीण जाव अण्णेसि च बहूर्ण कालवर्डेसगभवणवासीण असुरकुमाराण देवाण य देवीणय आहेवच्च जाव विहरइ, एवं खलु गोयमा । कालीए देवीए सा दिव्वा देविड्डी३ लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया, कालीए णं भते । देवीए केवड्य काल लिई पन्नता १, गोयमा । अड्डाइज्जाइ पलिओत्रमाईं ठिई पन्ना, काली णं भते । देवी ताओ देवलोगाओ अनंतर उच्चट्ठित्ता कहि गच्छिहिइ कहि उववज्जिहिइ १, गोयमा । महाविदेहे वासे सिज्निहिइ, एव खलु जवू । समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते तिमि । धम्मकहाणं पढमज्झयणं समन्त ॥ सू० ४ ॥ टीका- 'तएण सा' इत्यादि - ततः खलु सा काली आर्या अन्यदा कदाचित् ' सरीरवाउसिया' शरीरा बाकुशिका शरीरसस्करणशीला जाता चाप्यासीत् । अथ सा किं करोती ? त्याह-अभीक्ष्ण२ चारनार हस्तौ धावति, पादौ धावति, " 'तएण सा काली अज्जा अन्नया कयाइ, ' इत्यादि । टीकार्य - (तएण ) इसके बाद ( सा काली अज्जा ) वह काली आर्यां (अन्नया कयाइ) किसी एक समय ( सरीरवासिया) शरीर को सस्कारित करने के स्वभाववाली बन गई इसलिये वह (अभिक्खण २ 'तरण सा काही अज्जा अन्नया कयाइ ' इत्यादि - अर्थ --- ( तर्पण ) त्यारपछी ( सा काली अज्जा ) ते असी भार्या ( अन्नया कयाइ ) अक्ष मे वणते ( खरोरवाउसिया ) शरीरने सस्जरित કરવાના સ્વભાવવાળી ખની ગઈ, એટલા માટે તે— ( भर इथे घोवई, पाए धोत्रेइ खीस घोनइ, मुह धोवइ, थणतराइ धोवर,
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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