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________________ ७१८ पादपीठान् पचोरहा' प्रत्यरोहति भातरति, स्पानोर्य 'पाउपायो' पादुके 'ओयह ' अमुशति-पित्याति, मुस्त्या तीकराभिपुग्वी सतीसप्ता एपदानि 'अणुग 3' अनुगति -गमाप गाउति. अनुगम्य वाम जावं 'अवेइ' अश्नति-उपीरोनि, अनिता-उपत्य दक्षिण जानु धरणितले 'निदृष्टु' नित्य-स्थापयित्या 'विसुनो' निकल =निवारम् 'मदाण' मृर्धान-गस्तक धाणितले निवेशयनि-गनि, निमेश्य ईसि पचण्णमास स्वत्यानमति-रतीय शिरोनामयति, मत्यानम्प 'षडयडिययभिगाओ' कटत्रुटित स्तम्भिते पटके-करभूपणे तुत्रितेचा भूपणे ते म्नम्मिने-अप्रष्टये भुयाओ' भुजे 'माहरइ ' सहरनि=एकत्रीकरोति, सहत्य करयल जाव बहुकरतलपरि गृहीत शिर आपर्त मस्तकेऽञ्जलि का एमादीत-'नमोत्थुण' इत्यादिनमोऽस्तु खलु अर्थभ्यः यारद् सिद्धिगतिनामय स्थान सम्पाप्तेभ्यः, नमोऽस्तु से उठी-और उठकर वह पादपीट से होकर नीचे आई-नीचे आकर उसने दोनों पादुकाओं को पैरों में से उतार दिया। उतार कर फिर यह तीर्थकरराधिष्टित दिशा की ओर सात आठ पद आगे गई। वहा आकर उसने अपने चाम जानु को ऊंचा किया-ऊंचा कर के फिर दक्षिण जानु को नीचे धरणीतल मे रसा-रखकर फिर तीन यार अपने मस्तक को नीचे भूमिपर लगाया-लगाकर फिर यह कुछ शुकी-शिर को नीचेनवाया। बाद में कटक और त्रुटित से भूपित भुजाओ को एकत्रित किया-एकत्रित करके फिर उसने उन दोनों हाथोंकी अजलि बनाई-और उरो मस्तक पर आदक्षिण प्रदक्षिण कर इस प्रकार कहो (नमोत्थुण अरहताण जाव सपताण नमोत्थण समणस्स भगवओ महावारस्त ઉપર થઈને નીચે આવા નીચે આવીને તેણે બને પાદડાઓને પગમાંથી ઉતારી દીધી ઉતારીને તે તીર્થં કર જે દિશા તરફ વિરાજમાન હતા તે જ તરફ સાત-આઠ ડગલા આગળ ગઈ ત્યા જઈને તેણે પિતાના ડાબા ઢીંચશુને Gો કયે ઊંચો કરીને પછી તેણે જમણા ટીંચણને નીચે પૃથ્વી ઉપર ટેક ટેકવીને તેણે ત્રણ વખત પોતાના મ તો નીચે પૃથ્વી ઉપર ટેકવ્ય, ટેકવીને તે શેડી નમી-મસ્તકને નીચે નમાવ્યું ત્યારપછી તેણે કટક અને બુટ વિભૂષિત ભુજાઓને ભેગી કરી, ભેગી કરીને તેણે તેઓ બનેની આ જલિ બનાવી અને તેને મસ્તક ઉપર દક્ષિણ પ્રદક્ષિણ-પૂરક ફેરવીને આ પ્રમાણે છે (नमोत्थुण अरहताण जाव सपत्ताण नमोत्थण समणस्स भगरी महा पीरस्म जान सपाविउकामस्स पदामिण भगवत तत्यगय ह गया म
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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