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________________ अनंगारधर्मामृतमपिणो टोका थु २ च १ अ १ कालीदेवीवर्णनम् ७६३ प्रथमस्य खलु हे भदन्त । वर्गस्य श्रमणेन यावत्सम्प्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? सुधर्मास्लामीमाह-एप खलु हे नम्यूः ! अमणेन यावत्मम्प्राप्तेन प्रथमस्य वर्गस्य पञ्च अध्ययनानि प्रनतानि, तद्यथा-काली १, रात्रि २, रजनी ३, विद्युत् ४, मेपा ५ । जम्बूस्सामी पृच्छति-यदि ग्खलु हे भदन्त ! अमणेन यात्समाप्तेन प्रथमस्य वर्गस्य पञ्च अध्ययनानि प्राप्तानि, तर प्रथमस्य खल भद त ! अ-ययनस्य अमणेन यारत् सम्प्राप्तेन कोऽय प्रज्ञप्तः १ । सुधर्मा सामी कथयति एव खलु हे जम्नू । तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृह नगर गुणशिलक चैत्यम् , श्रेणिको राजा, चेल्लना देवी आसीन् । सामीत्वामी श्रीमहावीरस्वामी सुधर्मास्वामी से पूछते है कि (भते ) हे भदत ! (जहण) यदि (सम__णेण जाव सपत्तेण धम्मकहाण दसवग्गा पण्णत्ता) श्रमण भगवान् महावीर ने जो कि मुक्तिस्थान को प्राप्त हो चुके हैं धर्मकथा के दश वर्ग प्ररूपित किये है तो (ण मते ) हे भक्त । (समणेण जाय सपत्तेण पढमस्स वग्गस के अढे पन्नत्ते) उन्ही श्रमण भगवान महावीर ने कि जो मोक्ष में विराजमान हो चुके है प्रथम वर्ग का क्या अर्थ प्रजप्त किया है ? (एव खलु जब समणेण जाव सपत्तणं पढमस्स बगस्स पच अज्झयणा पण्णत्ता, त जहा-काली राई रयणी विज्जू मेहा जहण भते ' समणेणं जाव संपत्तेण पढमस्स वग्गस्स पच अज्झयणापण्णत्ता पढमस्सगं भते अज्ज्ञयणस्स समणेण जाच सपत्तण के अटे पपणत्त' एव खलु जबू! तेर्ण कालेण तेणे समएण रापगिहे णयरे गुणसिलए चेडए सेणिए राया चेल्लणादेवी) इस प्रकार जवू स्वामी के प्रश्न को सुनकर सुधर्मास्वामी ने __ सामी श्री सुधर्मा सामान पूछे छे , ( भते ) महन्त ! (जइण) ने (समगेर्ण जार संपतेण धम्मकहाण दुसरगमा पण्णत्ता ) श्रम ભગવાન મહાવીરે કે જેમણે મુક્તિસ્થાન મેળવી લીધુ છે ધર્મકથાઓના દશ पर्णा प्र३पित ४ा छ त ( भते ) 8 महन्त ! (समणेण जाय सपत्तेण पढमरस वगास्स क अढे पन्नते) ते श्रम सगवान महावीरे है या મોક્ષમા વિરાજમાન થઈ ચૂક્યા છે-પહેવા વર્ગને શો અર્થ પ્રાપ્ત કર્યો છે? (एव खलु जब समणेण जाव सपत्तेग पढमस्स वग्गरस पच अज्मयणा पण्णत्ता, त जहा-काली राई रयणी विज्जू मेहा जइण भते ! समणेण जात्र सपत्तेणे पढमस्स वग्गम पच अज्झयणा पण्णत्ता। पढणस्स पा भने, अल्झयण स समणेणे नाव सपण के अद्वे पण्णते ! एक खलु जब ! तेण कालेग तेण समएग रायगिहे गयरे गुणसिलए चेइए सेणिए राया चेल्लणा देरी)
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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