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________________ wwwredwungeŃ पच्चुण्णमइ पच्चुण्णमित्ता कड्यतुडियर्थभियाओं भुयाओ साहरइ साहरिता करयल जाय कहु एवं वयासी- नमोऽस्थुर्ण अरहताणं जाव सपत्ताणं नमोऽत्थूर्ण समणस्स भगवओ महा वीरस्स जाव सपाविउकामस्त चंदामि पण भगवंतं तत्थगयं इह गया पासउ म भगव तत्थ गए इह गयत्ति वंद नमसइ वदित्ता नमसित्ता सीहासणवरसि पुरस्थाभिमुहा निसण्णा, तरणं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे जाव समुप्यजित्था - सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वदित्ता जाव पज्जुवासित्तएत्तिक् एव सपेहइ सपेहित्ता आभिओगिए देवे सहावेइ सद्दावित्ता एवं बयासी - एव खलु देवाणुप्रिया । समणे भगव महावीरे एव जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देइ जाव दिव्व सुखराभिगमणजोग्गं जाणविमाणं करेह करिता जाव पच्च पिणह, तेवि तहेव करेत्ता जाव पच्चविणंति, णवर जोयण सहसावित्थिष्णं जाणविमाण सेस तहेव, तहेव णामगोय साइत नहि उवदंसेइ जान पडिगया ॥ सू० २ ॥ टीका' जण भते' इत्यादि । जम्बूस्वामीपृच्छति - यदि खलु 'भते ' भदन्त ! हे भगवन् ! श्रमणेन यraceaeda धर्म थाना दश प्रता ७६२ -: जहणं भते । इत्यादि । - टीकार्थ - ( जइण भते ! समणेण जाव सपत्तेणं धम्मको दसग्गा पण्णत्ता पढमस्स'ण भते । वग्गस्स समणेण जोव सपत्ते के अड्डे पणन्ते ? एव खलु जनू ! समणेण जाव सपत्तेण पढमस्स) जनूस्वामी श्रो जहण भवे । इत्यादि ( जण भते । समण जात्र मरण - का दगा पण्णत्ता पढमस्स समणे जात्र सपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ? एन खलु जब ! सम भते ! गेण जाव सपत्तेण पढमस्स० )
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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