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________________ - ७२० मापक 'आयविनर आग्यापयित ४धापतिरोधपितु न शानौतीति पूर्वेण सम्बन्ध', 'ताहे ' तदा अगमप घेर अामा अनिए 'यम' एतम. यम्-अण्डरीकागिलपित बस्यास्पम् , 'अणुमन्निश्या' अमन्यतस्वीकृत चान् , 'जार णिस्यमणामिसेण्ण' यात नि कागामिपेकेण ' स्वीकरणानन्तर निकमणोपयोगि रस्तुजानगृपनीय सरिधि दीक्षामिगे केण अभिपिश्चति, 'जाव थेराण सीमभिन्न दलयर' यार-स्थरिभ्य शिप्यभिक्षाम् अभिषेकानन्तर स पुण्डरीको राजा पण्डरीक शिपिया समुपदेश्य महता समारोहेण सह नलिनी रने उद्याने समायाति, तत्र स्थितेभ्यः स्थपिगम्यः पठघुभ्रातर शिष्यमिता ददाति । अनन्तर सण्डरीरः प्रचमित सन अनगारो जातः । तथा 'एका रसगरिक ' एकादशगरिएकादशसानपान जातः । वत' खलु स्थविरा मग के लिये आरयापनाओं पारा, प्रज्ञापनाओं द्वारा विज्ञापनाओं द्वारा सज्ञापनाओं द्वारा समय नहीं हो सके-तर उन्होंने विना इच्छा के ही कडरीक कुमार को दीक्षा ग्रहण करने रूप अर्थ की स्वीकृति देने के पाद निष्कमणोपयोगी समस्त वस्तुओं को उन्होंने मंगवाया-जय वे आ चुकी-तय उन्होंने उसका सविधि दीक्षाभिषेक से अभिसिंचन किया। अभिपेक के बाद पुडरीक राजा कडरीक को शिथिका में बैठाकर बडे समारोह के साथ नलिनीवन में आये । वहा आकर उन्होंने स्थविरों के लिये अपने लघुभाई को शिष्य की भिक्षा रूप से प्रदान किया। इसके पाद कडरीक (पन्धइए अणगारेजाए ) अवजित होकर अनगोरावस्था सान हो गये। (एगारसगविऊ-तएण थेरा भगवतो अन्नया कयाई पुडरिगिणीओ नयरीओलिणीवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमात, વિચલિત કરવા માટે આપ્યાપનાઓ, પ્રજ્ઞાપનાઓ, વિજ્ઞાપનાએ, સણા નાઓ વડે પણ સમર્થ થઈ શકયા નહિ ત્યારે તેમણે ઈચ્છા ન હોવા છતાએ કડરીક કુમારને દિક્ષાગ્રહણ કરવાની સ્વીકૃતિ આપી દીધી સ્વીકૃતિ આ બાદ તેમણે નિષ્ક્રમણને લગતી બધી વસ્તુઓ મગાવી જયારે વસ્તુ એ આવી ગઈ ત્યારે તેમણે તેનું વિધિસર દીક્ષાભિષેક વડે અભિસિંચન કર્યું અભિષેક કર્યા બાદ પંડરીક રાજા કડરીકને પાલખીમા બેસાડીને ભારે સમારોહની સાથે નલિની વનમાં આવ્યા ત્યાં આવીને તેમણે સ્થવિરો ને પિતાના નાના ભાઈને शिष्यना ३५मा आपसीपी त्या२५ श ( पपइए अणगारे जाए। પ્રજિત થઈને અનગારાવસ્થા સંપન્ન થઈ ગયે ( एगारसगविऊ-तरण थेरा भगवतो अन्नया कयाइ ५ । नय
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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