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________________ aritraraणी टीका २०५ स्थापत्यापुत्र निष्क्रमणम ३३ मृल्म्-तएण से थावच्चापुत्ते कण्हेण वासुदेवेण एव वुत्ते समाणे कण्ह वासुदेव एव व्यासी-जइ णं तुम देवाणुप्पिया। मम जीवितकरण मच्चु एज्जमाण निवारेसि जर वा सरीरस्वविणासिणि सरीर वा अइवयमाण निवारेसि, तएण अह तब बाहुच्छाया परिग्गहिए विउले माणुस्सर कामभोगे भुजमाणे विहरामि ॥ सू० १३ ॥ "6 1 टीका- 'तरण से यान्यापुत्ते ' इत्यादि । ततः खलु स स्थापत्यापुत्र' कृष्णवासुदेवेनैवमुक्तः सन् कृष्ण वासुदेवमेवमवादीत् - हे देवानुप्रिय ! यदि सलु त्वमम जीवितरण " जीवितान्तकरण जीवन विनाशकारक, ' मच्चु मृत्यु = मरणदु ख, 'एज्जमाण ' एनमानन = आगच्छन्त, निवारयसि, 'जर वा' कारण उस का यह है कि मेरे राज्य में तुम्हें कुछ भी कष्ट नही होगा । मैं सदा तुम्हारी सहायता करता रहूँगा। क्यों व्यर्थ मे परम कष्ट साध्य दीक्षा ग्रहण करते हो- छोडो इसे । सूत्र 66 "" ११ 6 तएण से धान्यापुत्ते कहे पण इत्यादि ॥ टीकार्य - (तरण) इसके बाद (से यावच्चापुत्तं कण्हे ण वासुदेवेण ) कृष्णवासुदेव के द्वारा इस प्रकार कहे गये उस स्थापत्यपुत्र ने ( कण्ह वासुदेव एव वयासी) कृष्णवासुदेव से इस प्रकार कहा - ( जहण तुमं देवापियो मन जीवितकरणमच्चु एजमाण निवारेनि जर वा सरीरवचिणासिणि सरीरवा अइवलमाण निवारेमि ) हे देवानुप्रिय ? यदि आप मेरे जीवन का अन्तकरने वाली आते हुए मृत्यु को मुझ से दूर રાજ્યમા રહેતા તમને કે! પણ જાતની તકલીફ ચશે નહિ હમેશા હું તમારી મદદ માટે પડખે ઉભેાછુ નુ કામ વ્યર્થ કષ્ટ સાર્વ્ય-ડણુ દીક્ષા ગ્ર ુણુ કરવા તૈયાર થયા । ડી. આ લપને 1 सूत्र ૧૧ ( तएण से यावच्चापुत्ते कण्हेण इत्यादि ) । 66 "" राजर्थ - (त एण) त्याग पडी (से यावच्चापुत्ते कण्हेण वासुदेवेण ) ष्णुवासुदेव पडेगा जीते न्हेपामेला स्थापत्या पुत्रे, ( कण्ह वामुदेव एव वयासी ) प्यु वासुदेवने या प्रभाऐ उधु - ( जइण तुम देवाणुपिया मम जीविय तकरणमन्चू एज्जमान निनारेसि जर ना मरीररूननिणासिणि सरीर वा अइवयमाण नित्रारेसि ) हे हेवानप्रिय ! જો તમે મારા જીવન ને નાશ કરનાર મૃત્યુ તે
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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