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________________ हाताधर्मकथा सुख चै माप्तः सन् पश्चान्मोपदगाम्यमात् , तया-अविरति कृतोपसगैरक्षुधे संसदमी-मुनिर्मोक्षस्थान शिवसुख च प्राप्स्यतीति । . एव खलु हे जम्बू ! अमणेन भगवता महावीरेण नवमस्य ज्ञाता प्रयनस्य अय-पूर्वोक्त अर्थः भावः प्रजातापित । तिनेमि इतितीमि पूर्ववत् ।मू०१९।। इति श्री-विश्वविख्यात-जगदूगलभ-प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभाषाफलितललितकलापागप-मविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-पादिमानमर्दर-श्रीशाहूच्छ पतिकोल्हापुररानप्रदत्त-'जैनशास्त्राचार्य' पदभूपित-कोल्हापुरराज गुरु-गालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिराकरपूज्यश्री-बासीलार प्रतिविरचिताया · ज्ञाताचर्मकथाङ्ग' सूत्रस्यानगारधर्मामृतवः । - - पिण्याख्याया व्यारयाया नवममभ्ययन ,सपूर्णम् ॥९॥ बनी जिन पालित अपने स्थान पर मऊशल लौट आया और वहा उस 'ने अपने जीवन का सुख भोगा-पश्चात् वही मोक्षपद गाभी भी हुआ उसी तरह अधिरति कृत उपप्तर्गों से अक्षुब्ध ना हुआ सुसयमी मुनि मोक्ष स्थान को प्राप्त कर शिव सुख को भोक्ता घनेगा । इस प्रकार हे जबू! श्रमण भगवान महावीर ने इस नवम ज्ञाता ययन का यहुपूर्वोक्त रूप से अब प्रतिपादित किया है । उसी के अनुसार यह मेने तुम्हें समझाया है । सूत्र.॥ १० ॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर श्री घासीलालजी महाराज कृत " ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र" की अनगारधर्मामृतवर्षिणी व्याख्या का नववा अध्ययन समाप्त.॥ ९॥ પાછા આવ્યું, ત્યાં તેણે સુખેથી પિતાના દિવસે પસાર કર્યો અને છેવટે મણ મેળવ્યું તેમજ અવિરતિકૃત ઉપસર્ગોથી નિભીક થયેલ સુસયમી મુનિ મોક્ષ સ્થાનને મેળવીને શિવમુખને 3 ભેગ કરશે આ રીતે હે જ બૂ! શ્રમણભગવાન મહાવીરે નવમા જ્ઞાતાધ્યયનને આ પૂર્વોક્ત અર્થ નિરૂપિત કર્યો છે ते भुरम में तने मी विरात समती है ॥ १० ॥ શ્રી જૈનાચાર્ય ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત જ્ઞાતાસૂત્રની અનગારધર્મામૃતવાણી व्याभ्यानु नपभु ५ पयन सभात ॥ ६ ॥
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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