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________________ ६५२ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे B च, स्वस्य लाणसमुद्रोत्तरण च चम्पागमन पगटत्यचम्पानगरी समागन च कक्षापृच्छन = शैलकयक्षस्य जिनपालित प्रति स्वस्थानगमननिवेदन च एतत्सवै वृत्तान्त'' जहाभूय ' यथाभूत= यथाजातम्, 'अनिवह' अवितय= सत्यम्," अस दिद'' असद-सदेहरहित परिकथयति । ततः सतु स जिनपालितो यावदू ''अपसोए अल्पशोकः = विगतशोक. यावद् विपुलान् भोगभोगान् शब्दादि विषयान् भुञ्जानो विहरति । , ずり IM दीवदेवपाउवसग्ग च जिणरक्खियविवन्ति च त्वणसमुद्द उत्तरण - चपागमण च सेलगजक्स भागच जाभूयमवित हमसद्धि परिक ) तब जिन पालित ने माता पिता से लवणसमुद्र में उतरने से लेकर अचानक कालिक चायुका उठना नौका का नष्ट होना काष्ट फलक का मिलना उसकी सहायता से रत्न द्वीप में उतरना वहा रयणा देवी के द्वारा अपना ग्रहण होना उसके साथ भोग रूप विभूति का भोगना, बाद मे रयणा देवी के वधस्थान का देखना वहा शेलारोपित पुरुष को देखना, शैलक यक्ष की पीठ पर चढना रयणा देवी का उपग करना, जिन रक्षित का मरण होना अपना लवणसमुद्र का पार करना चंपा नगरी में पीछे आना और शैलकयक्ष का पुछ कर अपने स्थान वापिस चले जाना यहा तक का सब वृत्तात जैसा हुआ था ठीक २ विना किसी सदेह के उस ने सुना दिया । ( तएण से जिणपालिएँ जावे अपसोगे जाव बिउलाइ भोग भोगाइ भुजमाणे विहरइ ) इसे के याद शोक रहित बना हुआ वह जिनपालित विपुल शब्दादि विषयों विवर्त्ति चं लवणसमु उत्तरण च चपागमण च सेलगंजक्खआपुच्छृणं च जहा भूमंत्रितमसद्धि परिहेर ) 5 ત્યારે જીનપાવિતે માતાપિતાને લવણુ સમુદ્રમા યાત્રા કરતી વખતે એચિતા પર્વનની અથડામણથી નાવ ડૂબી જવાના અકસ્માતથી માડીને લાક ડાની સહાયતાથી રત્નદ્વીપના કિનારા સુધી પહાચવુ રયણા દેવીની લપેટમા સાવવુ, તેની સાથે કામ ભોગે ભગવા, રયણા દેવીના વધથાનને તૈયુ, શૂળી ઉપર લટકતા માણસને જોવુ, એક યક્ષનાં પીઠ ઉપર બેસવુ, રયણા દેવીના ઉત્પાત કરવા, જીનરક્ષિતનુ મરણુ થવુ સકુળ પેાતાની લવણુ સમુદ્ર યાત્રા પૂરી કરવી, ચ પા નગરીમા આવુ અને કૌતક યક્ષનુ તેને પૂછીને ફ્રી રત્નદ્વીપ તરફ રવાના થવું અહીં સુધીની એકે એક વાત તેણે કહી સ ભળાવી (तएण से जिणपा लिए जान अप्पसोगे जाव चिउलाइ भोगभोगा, भुजमाणे विहर () ત્યારબાદ નિશ્ચિત થયેલા જીનપાલિત શખ્ત વગેરે વિષયાને अभा T
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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