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________________ वाताधर्म कथासूत्रे समणं भगवया महावीरेणं नवमस्त नायज्झयणस्स अयमट्टे पत्ते तिमि ॥ सू० ९ ॥ ॥ नवमं अज्झयण समत्त ॥ 840 टीका' तएण जिणपालिए ' इत्यादि । ततः खलु जिनपालितबम्पामनु त्रिशति, अनुप्रविश्य यौन as गृह व पितरी कोपागच्छति, उपागत्य अम्नापित्रोः समीपे रुदन् यावद् विपन्= विलाप कुर्वन् जिणरक्षितव्यापति- जिणरक्षितमरण निवेदयति कथयति, ततः खलु स जिनपालिताम्बा पितरौ च मित्रज्ञातियावत्परिजनेन सार्द्धं रुदन्तः सर्वे नहूनि लौकिकानि मतकृत्यानि तएण से जिन पलिए ' इत्यादि । " टीकार्थ - (तण्ण) इसके बाद (से जिनपालिए चप अणुपविसर वह जिन पालित चरा नगरी में अनुप्रविष्ट हुआ । (अणुपविसिप्ता जेणेव सए गेहे जेणेव अम्मा पिय तेणेव उवागच्छ / प्रविष्ट होकर वह जहां अपना घर और उस में भी जहां अपने माता पिता थे वहाँ गया । ( उवागच्छित्ता अम्मापिऊण रोयमाणे जाव विलवमाणे जिणरक्खिय धावन्तिं निवेदेह, तएण जिणपालिए अम्मापि मिलणाइ जाव परियण सद्वि रोयमाणा बहहिं लोइयाइ मयकिचाइ करेंति ) वह जाकर उस ने रोते हुए यावत् विलाप करते हुए माता पिता से जिनरक्षित मृत्यु हो जाने के समाचार कहे । इस के बाद रोते हुए उस जिनपा की " ari से जिनपालिए' इत्यादि टीडार्थ - (तरण ) त्याश्णा ( से जिनपाढिए चप अणुपविसद्द ) પાલિત ચ પા નગરીમા ગયે (अणुपविसित्ता जेणेव सए गेहे जेणेव अस्मापियरो तेणेव उपागच्छ ) ત્યા જઈને જ્યા તેનુ ઘર અને તેમાં પણ જ્યા તેના માતાપિતા હતા ત્યા પહેાગ્યે ( उवागच्छित्ता अम्मापिऊण रोयमाणे जाव विलनमाणे जिणरक्खियबावर्त्ति निवेदेश, वरण जिणपालिए अम्मापिउरो मित्तणाइ जात्र परियणेण सद्धिं रोयमाणा बहूहिं लोइयाइ मम किच्चाइ करे ति ) ત્યા તેણે રડતા યાવત્ વિલાપ કરતા પેાતાના માતાપિતાને અનરક્ષિતના મૃત્યુનાં સમાચાર કહ્યા ત્યારપછી જીનપાલિત અને માતાપિતાએએ રડતા મિત્રજ્ઞાતિ યાવત્ પરિજનાને ભેગા કરીને મરણ પછીની બધી `ધિઓ પૂરી
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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