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________________ मनगरघमृतर्पणी टी० म० ९ माकन्दिदारकचरितनिरूपणम् ६५१ } कुर्वन्ति कृत्वा कालेन = कतियय दिवसानन्तरेण विगतशोका. = शोकरहिता जाताः । तव खल जिनपालितम् अन्यदा कदाचित् सुखासन रगत = मुखोपविष्टम् अम्बा पितरौ एवमवादिष्टाम् - कथ = केन प्रकारेण खल हे पुत्र ! जिनरक्षितः फालगतः = मृतः, ततः खलु स जिनपालिताऽम्बापित्रोः - लवणसमुद्रोत्तार च कालिकवातसमुत्थान, पोतवहनव्यापत्ति- नौका मङ्गच, फलकखण्डासादन = फलकखण्डावलम्बन च, रत्नद्वीपोत्तार च, रत्नद्वीपदेवताग्रहण च, भोगविभूर्ति = भोगसम्पत्ति च रत्नद्वीपदेवतायाः ' आघायण आघातन = वधस्थान च, शूलाचित पुरुषदर्शन च शैलकयक्षारोहण च, रत्नद्वीप देवतोपसर्गे च जिनर क्षित विपत्ति= जिनरक्षितमरण लित, और उनके माता पिता ने मित्र जाति यावत् परिजनो के साथ समस्त अनेक लौकिक मृतक कृत्य किये । (करिता कालेण विगय सोया जाया ) याद में जैसे २ समय व्यतीत होता गया वैसे २ ये सब शोक रहित वन गये और फिर बिलकुल शोक शून्य भी हो गये । (तएण जिन पालिय अन्नया कयाह सुहासणवरगय अम्मा वियरो एव वनासी कण्ण पुत्ता जिणरखिए कालगए ) एक दिन की बात है कि जब जिन पालित आनन्द से बैठा हुआ था तन माता पिता ने उस से पूछा पुत्र ! जिनरक्षित किस प्रकार से काल कवलित हुआ ? (तएण से जिन पालिए अम्मापिऊण लवणसमुद्दोत्तार च कालियवायसमुस्थण पोतवहणविवन्ति च फलहखडआसायण च रयणदीवुत्तार च रयणदीवदेवया गिण्हण च भोगविभृइ च रयण दोवदेवयाए आधापण च सूलाइय पुरिसदरिसण सेलगजक्ख आरुण च रयण री ( करिता कालेर्ण विगय सोया-जाया) त्यारगाह प्रेम प्रेम समय पसार થતા ગયા તેમ તેમ તેઓ પેાતાનુ દુખ પણ ભૂલતા ગયા અને છેવટે જીન રક્ષિત વિશેનુ દુખ તેઓના હૃદય પટલ ઉપરથી સાવ ભુસાઈ ગયુ (तएण जिनपालिय अन्नया क्याइ सुदासणवरगय अम्मापियरो एक वयासी कण्ण पुत्ता जिणरक्खिए कालगए ) જ્યારે એક દિવસે જનપાલિત આનદપૂર્વક બેઠા હતા ત્યારે માતા પિતાએએ તેને પૂછ્યુ કે હે પુત્ર! જીતરક્ષિત કઈ રીતે મરણ પામ્યા છે? (तरण से जिनपालिए अम्मापिऊण लवणसमुद्दोत्तार च कालियवायसमु स्थण पोतवद्दणविवर्त्तिच फलहरखड आसायग च रयणदीवत्तार च रयणदी देवयागिण च भोगविभूः च रयणदीवदेवयाए आधायण चलाइय पुरिसदरिसण सेलगजक्ख आरुहग च रयणदीन देवया उपसर्ग च जिणरक्खिय
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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