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________________ २४ माताधर्मकथा गजाश्वरथपदातियुक्तां सेना सज्जयत, विजय = विजयनामान च गन्धारितनम् 'उववेह ' उपस्थापयर-मप्टनादिना मुसजनीकृत्य स्मानयत । तेऽपि-कौडपिन पुरुषा अपि, कृष्णवासदेचाज्ञां श्रुत्वा ' तयाऽस्तु ' उत्युक्खा तथैवोपस्थापयन्ति-आनयन्ति, यावत् पर्युपासते ॥ सू० ९॥ मूलम्-थावच्चापुत्ते विणिगए जहा मेहे तहेव धम्म सोचा णिसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायगण करेइ, जहा मेहरस तहा चंव णिवेयणा, जाहे नो सचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बहूहि आघवणाहि य पन्नवणाहिय सन्नवणाहि य विनवणाहि य आघवित्तए वा ४ ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स निक्खमणमणुमन्नित्था। तएण सा थावच्चा आसणाओ अब्भुटेइ, अब्भुटित्तामा हत्थ महग्ध महरिय रायरिह पाहुड गेण्हइ, गिणिहत्ता मित्त जाव सपरिवुडा जेणेव कर्णहस्स वासुदेवस्स भवणवरपडिदुवार(खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया। चाउरगिणी सेण सज्जेह) भो देवानुप्रियो। तुम लोग शीध्र ही चतुरगिणी सेना को सज्जित करो (विजय च गधहत्थि उवट्ठवेह) और विजय नाम के गध हस्ती को वेष भूषा से मडित कर उपस्थित करो (ते वि तहत्तिउवट्ठवेंति ) उन कौटुम्बिकपुरुषों ने भी कृष्ण वासुदेव की ओजा सुन (तथास्तु) ऐसा कहकर वैसा ही किया यावत् उनकी पर्युपासना की ॥ सू-९॥ मेव भो देवाणुप्पिया ! चउर गिणी सेणं सज्जेह " पानुप्रियो! तमे सत्पर यतुर नि सेना तैयार ४२। “ विजय प गधहत्यि उवट्ठवेह" भने विन्य नाम: १५ थान सु१२ वेषभा Aore शन उपस्थित ४। “ते वि तहत्ति उघटुवे ति जाव पज्जुवासति " ags पुरुषाये ४५ पासुनी भाशा સાભળીને (તથાસ્તુ ) આમ કહીને તેમની આજ્ઞા મુજમ કર્યું અને તેમની પર્યું પાસના કરી છે સૂત્ર ૯ !
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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