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________________ भनगारधर्मामृतपिणी टी० म० ९ माफदिवारकचरितनिरूपणम् कम्मरसगए अवयक्खति मग्गतो सविलिय, तएण जिणरक्खिय समुप्पन्नकलुणभावंमच्चुगलथल्लणोल्लियमइं अबयक्खत तहेवजक्खे य सेलए जाणिऊण सणियं२ उबिहति नियगपिट्ठाहि विगयसद्धं, तएण सा रयणदीवदेवया निस्ससा कल्लुण जिणरक्खिय सकलसा सेलगपिट्टाहि ओवयंतदास ! मओसित्ति जंपमाणी अप्पत्तं सागरसलिलं गेण्हिय वाहाहि आरसंत उड्डू उविहति अवरतले, ओवयमाण च मडलग्गेण पडिच्छित्ता नीलुप्पलगवलअयसिप्पभासेण असिवरेण खंडाखडि करेति तत्थ विलबमाण तस्स य रारसवाहियस्त घेत्तूण अगमंगाई सरु हिराइ उक्खित्तवलि चउद्दिसि करेंति सा पंजली पहिट्टा ॥सू०७ ॥ _____टीका-'तएण सा' इत्यादि-तत' खलु सा रत्नद्वीपदेवता लवणसमुद्र' त्रिसप्तकत्या एकविंशतिवारम् अनुपर्यटति, अनुपर्यट्य यत्तत्र तृण वा यावत् सर्व पत्र काष्ठादिकमपनीय-एकान्ते 'एडेइ' एडति मक्षिपति, मक्षिप्य यौन प्रासादावतसकस्तौवोपागच्छति, उपागत्य तो माफन्दिरुदारको प्रासादावतसके-अपश्यन्ती __'तएणं सा रयणदीवदेवया' इत्यादि । टीकार्य -(नएण) इसके बाद (मा रयणदीवदेवया) उस रयणादेवी ने (लवण समुद्द तिसत्तखुत्सो अणुपरियति ) लवण समुद्र की २१ बार प्रदक्षिणा को-(ज तत्य तण वा जाव एडेड एडित्ता जेणेव पासायवडे सए तेणेव उवागच्छति ) इस समय में उसे वहां पर जो तृणकाष्ठ पत्र आदि मिला उस-सको वहा से हटाके दूर जाकर एकान्त स्थान में डाल दिया। डालकर फिर वह जहा अपना श्रेष्ट प्रासाद था वहा आई. 'तएण सा रणदीव देवया ' इत्यादि । 2ीर्थ-(तएण) त्या२मा (सा रयणदीव देवया) ते २यावास (टवण समुद्द ति सतखुत्तो अणुपरियट्टति) any समुद्रनी पीय पा२ मक्षिा (ज तत्थ तणे वा जाव एडेइ एडित्ता जेणेव पासायवडेंसए तेणेव आगच्छ) પ્રદક્ષિણા કરતી વખતે રાયણ દેવીને ત્યા તૃણુ, કાઈ પત્ર વગેરે જે કઈ પણ લેવામા આવ્યુ તેને ત્યાથી દૂર એકાતમા ફેકી દીધુ ફેકીને તે પિતાના નમ મહેલમાં આવતી રહી
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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