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________________ मनगारधर्मामृतपिणी टीका २०५ समपरणे कृष्णगमनादिनिरूपणम् निष्काम्य यौन सुधर्मासभा, यौन कामुदिका भेरी, विद्यते तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य व मेघरसिता गम्भीरा मधुरशब्दा कौमुदिका भेरीं ताडयन्ति = वादयन्ति । तवः = तदनन्तर 'निद्धमहुरगभीरपडिए पित्र ' स्निग्यमधुरगम्भीर प्रतिश्रुतेनैव-स्निग्ध- हृदय हर्पजनक मधुर गम्भीर प्रतिश्रुत = प्रतिवनिर्यस्य स तथा तेनेत्र केन ? 'सारहरण' शारदिकेन शरत्कालसमुद्भूतेन वलाहएण पिव' बलाहके नेव= मेवेनेव ' अणुरसिय' अनुरसितम् अनुगर्जित भेर्या, शार दिकमेघगर्जितवद भेरीध्वनिर्जात इत्यर्थः ॥ सू०८ ॥ " मूलम् - तएण तीसे कोमुइयाए भेरियाए तालियाए समाणीए वारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिन्नाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडगतियचउक्कचच्चरकंदरदरी विवरकुहरगिरिसिहर नगरगोउरपासायदुवारभवणदेउलप डिसुयसयसहस्स संकुलं क्ररेमाणे वारवइ नयरि सभितर बाहिरिय सव्वओ समता से 'फिर वे कृष्ण वासुदेव के पास से चलदिये । (पडिनिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कोमुदिया भेरी- तेणेव उवागच्छति ) चलकर वे उस सुधर्मा सभा में जहा वह कोमुदिक नामकी भेरी रखी हुई थी वहां गये (उवागच्छित्ता त मेघोघरसिय गभीरमहरसह कोमुदिय भेरिं तालेंति ) वहा जाकर उन्होंने उस मेघो के समूह जैसी सान्द्र गभीर मधुर शब्द वाली कौमुदिक भेरी को बजाया (तओ मिहुरगभीर पडि सुरण पिव सारइण बलाहएण पिव अणुरसिय भेरीए ) बजते ही उस भेरी की व्वनी शरत्कालीन मेघ की गर्जना के समान हुई । ॥सू -८॥ + मति" आज्ञा अर्या माह तेथे। ढष्णुनी पासेथी महार नीउज्या" " "पडिकिक्ख मित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेत्र कोमुदिया भेरी तेणेव उवागच्छति ” भने ત્યાથી તે સુધર્માં સભામા જ્યા કૌમુદ્રિક નામની ભેરી મૂકેલી હતી ત્યા ગયા " उत्रागच्छित्ता त मेघोघरसिय गभीर महूरसह कोमुदिय भेरि वाले ति " ત્યા જઈને તેમણે મેઘસમૂહના જેવી સાન્દ્ર ગભીર અને મધુર શબ્દવાળી प्रौभुहिङ लेरीने बगाडी “तओ द्विमहुरगभीर परिसुरण पित्र सारइण वाहण पिव अणुरखिय भेरीए " ते लेरीमाथी शरद ऋतुना भेधनी सजलीर सान्द्र નિ ચેામેર પ્રસરી ગયેસ્ "
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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