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________________ भनगारधर्मामृतषिणा टीका अ० ८ मालीभगवद्दीक्षोन्सवनिरुपणनम् ५५ ततः रलु नो टेवे द्रो देवराजो ग्ल्या अईत. केशान अतीन्छति लुधितान केशान रखे धरति परिच, क्षीरोदर मुद्र महिपति । तत रूल् म्ल्ली अहन'णमोऽयण सिद्धाण 'मोऽस्तु ख्ल रिद्धेश्य ति कृत्या सामारिकचारित्र प्रतिपद्यतेमाप्नोति । यस्मिन समये च खलु पल्लो उहन चारित्र प्रतिपन्न तस्मिन्नेव समये ख्लु देशना मनुष्यणा च णिग्योसे' निर्घोषः शब्दः, तुरिय णिणाय गीयवाइय निधोसे य पूर्यनिनादगीतबादित्र निपश्च माधगीतध्वनिश्च शकवचनसदेशेन क्रेन्द्राशया, "णिलके' निलीन' तिरोहितः निवृत्त चाप्यभवत् । (तपण सरके दविंदे देवराया मल्लिस्स केसे पडिच्छइ पडिच्छि ताखोरोदग समुद्दे पक्खिवह ) उन मल्लि प्रभुके लुचित के शोंको शक देवेन्द्र देवराज ने अपने वख मे रग्ब लिया और रखकर क्षीर मागर मे उन्हे प्रक्षिप्त कर दिया । (तण्ण मल्ली अरहा ' णमोत्युण सिद्धाणत्ति कट्टु सामाइयचरित्त पड़िवजह ) मल्ली अहंतने " सिद्धों को नमः स्कार हो " ऐसा पाठ चोल कर सामायिक चारित्र को धारण किया। (ज समय चण मल्ली अरहा चरित्त पडिवज्जइ त समय च ण देवाणमागुस्साण य णिग्धोसे तुरिय निणाय गीयवाइयनिग्धोसे य सक्करस क्यणसदेसण णिलुक्के याचि होत्या) जिस समय मल्ली अहंत ने चारित्र को अगीकार किया था उस समय देयो और मनुष्यो का निर्घोष हुआ था तथा बाजों एवं गीतों की जो ध्वनि हुई थी यह सब शकेन्द्र की आज्ञा से बन्द कर दी गई। (तएण सक्के देविदे देवरायामलिस्स केसे पडिच्छइ पडिच्छित्ता खीरोदगे समुद्दे पक्खिबह) તે મતલી પ્રભુના લુચિત વાળને શક દેવેન્દ્ર દેવરાજે પિતાના વસ્ત્રમાં લઈ લીધા અને લઈને લીર સાગમાં તેઓને નાખી દીધા (तएण मल्ली अरहा ' णमोत्युण त्ति कटु सामाइय चारित्त पडिविसज्जइ) મલ્લી અહં તે “સિદ્ધોને મારા નમસ્કાર” આ પાઠનું વાચન કરતા સામાયિક ચારિત્ર ધારણ કર્યું (ज समय च ग मल्ली अरहा चरित्त पडिवज्जइ, त समय च ण देवाण माणुस्साण य णिग्घोसे तुरिय निणाय गीयवाइयनिग्योसे य सकस बयण सदेसण णिलुक्के याविहोत्था) જ્યારે મલ્લી અર્હતે ચારિત્રને સ્વીકાર કર્યો ત્યારે દેવે અને માણ સોના થયેલા હર્ષ નિપને તેમજ વાજા ઓ અને ગીતના વિનિને શકે પિતાના હકમથી બંધ કરાવી દીધે
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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