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________________ माताधर्मकथा भुजमाणा विहरति, त जहा-'सारस्सयमाइच्चा पहि-वरुणा य गदतोया य । तुसिया अव्वाबाहा अम्गिच्चा चेव रिट्ठाय ॥१॥" तएणं तेसि लोयतियाणं देवाणं पत्तेयं२ आसणाई चलति तहेव जाव अरहताणं निक्खममाणाण सबोहण करेत एत्ति त गच्छामो णअम्हेवि मल्लिस्ल अरहओ सयोहण करेमि त्तिकटु एव सपेहेंति, सपेहित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभाय अव. कमति, अवकमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएण समोहणति, समो हणित्ता सखिज्जाई जोयणाइ एव जहा जभगा जाव जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रन्नो भवणे जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता अतलिक्खपडिवन्ना सखिखिणियाइ जाव वत्थाई पवरपरिहिया करयल० ताहिं इहाहि जाव वग्गूहि एवं वयासी-बुज्झाहि भयव। लोगनाहा। पवत्तेहि धम्मतित्थं जीवाणं हियसुहनिस्सेयसकर भविस्सइ त्तिकटु दोच्चपि तच्चपि एवं वयति, वयित्ता मल्लि अरह वदति नमसंति, वदित्ता नमसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । तएण मल्ली अरहा तेहि लोगतिएहि देवेहि सबोहिए समाणे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवा० करयल० इच्छामि णं अम्मयाओ। तुभेहि अब्भणुष्णाए समाणे मुडे भवित्ता जाव पव्वइत्तए, अहासुह देवा० । मा पडिबध करेहि, तएणं कुभए कोडुबियपुरिसे सहावेइ सदावित्ता एव वयासी-खिप्पामेव अट्रसहस्स सोवणियाणं जाव भोमे
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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