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________________ ५०३ धर्मा मूलम् - तेणं कालेणं तेण समएण सक्कस्सासणं चलइ, तपर्ण सक्के देविदे३ आसण चलिय पासइ, पासित्ता ओहिं पउजड़, पउजित्ता मल्लि अरहं ओहिणा आभोएइ, आभोइत्ता इमेया रूवे अज्झत्थिए, जाव समुप्यजित्था - एवं खलु जबूद्दीने दोवे भार वासे मिहिलाए कुंभगस्स रन्नो भवणसि मल्ली अरहा निक्खमिस्साइ त्ति मणं पहारेइ, त जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमनारायाण सक्काण३ अरहताण निक्खममाणाण इमेयारून अत्थ सपयाणं दलित्तए, त जहा तिष्णेव य कोडिसया अट्टासीति च होंति कोडिओ । असिति च सयसहस्सा इंदा दलयंति अरहाण ॥ १ ॥ 'एवं संपेहेइ, संपेहित्ता वेसण देव सद्दावेइ सदावित्ता एव वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया। जबूद्दोवे दीवे भारहे वासे जात्र असीति च सयसहस्साइ दलइत्तए, त गच्छह णं देवाशुप्पिया | जबुदीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए कुभगभवणसि इमेयारूत्रे अत्थसपदाणं साहराहि, साहरित्ता खिप्पामेत्र मम एयमाणत्तिय पञ्चष्पिणाहि, तएण से वेसमाणे देवे सक्केण देविदेण देवराएण एव बुत्ते हट्टे करयल जान पडिसुणेइ, पडिणित्ता जभए देवे सदावे, सदावित्ता एव वयासी- गच्छह णतुभे देवाणुपिया । जबूदीव दीव भारहं वासं मिहिल रायहाणि कुभगस्स रन्नो भवसि तिनेव य कोडिसया अट्ठासीय च A
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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