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________________ - - - पाताधर्ममा ___ततस्तदनन्तर ग्यलु सा मी दिहरा नारान्या म्मक राजानम् एषवक्ष्पमाणप्रकारेण, अमादीत-ह तात ! यूय बल मा अपहनमन सम्रपो यावदध्यायथ, हे तात ! युय खलु तेपा जितशत्रुमाग्वाणा पगा राजा प्रत्येक गति दूतसप्रेपण कुरुत, एक प्रत्येव दत-'ताम्भ्य दास्पामि महीं विदेहराजकर कन्याम् ' इति कृत्वा इत्युक्तमा, सन्याका समये - सूर्येऽस्तगतेसति 'पविरम मणससि ' मविरलमनुष्ये-मार्गादो काचिद् सविद् पिरला अल्पा मनुष्या यत्र स तथा तम्मिन्, रानिसद्भावे सतीत्यर्व तथा निशानजनकटकले अनिवजित कोई भी छिद्र आदि नहीं मिल रहता है। मैंने अनेक विध उपायों से उन्हें परास्त करने का विचार भी किया-औत्पत्ति की आदि धुद्धियों से सचिवों के साथ उन्हें वश करने की मत्रणा मी को परन्तु मुझे कछ भी उपाय इन्ह वश यो परास्त करने का नजर नहीं आ रहा है-अतः अपरतमनः सकल्प चाला घना हआ में इस समय चिन्ताग्रस्त हो रहा हूँ। (तएण सा मल्ली विदेहरायवराना कुमय राय एव वयासी) इस प्रकार अपने पिता कुमक राजा की बात सुनकर उस विदेहराज वर कन्या ने उन से कहा- (माण तन्मे ताओ ! ओत्यमणसकप्पा जाव'झियायह ) हे तात ! आप अपहत मनः सकल्प होकर यावत् चिन्तित न घने मै इस विषयमें आपको उपाय बतलाती है ( तुम्भेण ताओ तेसि जिय सत्तू पामक्खिाण छण्ट रायाग पत्तय रहसिय दूय सपेसे करेह ) हे पिताजी ! वर उपाय यह है कि आप उन जितशत्रु प्रमुख रोजाओ में से प्रत्येक राजा के पास एकान्त में अपना दूत અત્યાર સુધી તેમનું એક પણ છિદ્ર (ખામી) ની જાણ થઈ શકી નહિ ઘણા ઉપાથી તેમને હરાવવાના વિચારે પણ મે કર્યા છે, ત્પત્તિકી વગેરે બુદ્ધિઓથી માત્રીઓની સાથે વિચારણું પણ કરી છે પણ મને તેઓને સ્વાધીન બનાવવા કે હરાવવા માટે કઈ એક પણ ઉપાય જણાતું નથી એથી अपडतमन १४६५पाणे ई सात ध्यानमा तल्लीन थन मेही छु (तएणं सा मल्ली विदेहरायवरफन्ना कुमय राय एव पयासी) मा रात पाताना પિતા કુભક રાજાની વાત સાંભળીને વિદેહરાજવર કન્યાએ તેમને કહ્યું કે(मा ण तुझे ताओ । ओयमणस कप्पा जोव झियायह) तात! सत्यारे તમે ચિંતામગ્ન છે એટલે તેને દૂર કરવા માટે હું એક ઉપાય બતાવું છું (तुन्भेण ताओ सेसि जियसत्त पामोक्साण छहरायाण पत्तेय रहसिय दूयस पेसे करेह ) पिता ! तमे शत्रु प्रभु भाथी ४३६ २सनी પાસે એકાતમા પિતાને દૂત મોકલે
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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