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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ मिथिलानिरोधवर्णनम् प्रति निशान्ते जनानां निद्रोपगतत्वेन सर्पशा जनध्वनिमचाररहिते यस्मिन् काले फोऽपि मार्गे दत न पश्येदिति भानः, प्रत्येक मिथिला राजधानीमनुप्रवेशयत, अनुप्रवेश्य गर्भगृहेषु अभ्यन्तरवर्ति भवनेषु अनुप्रवेशयत, तत्तो मिथिलाया राज घान्या द्वाराणि पित्त, नाच्छादयत पिधीय रोधसज्जा-रोन मतिरोनाऽऽत्मरक्षा कुर्वन् तिष्ठत्त । ततःमल्लीवाक्यप्रवणानन्तर सलु कुम्भको राजा मल्ल्या भेजिये (गमेग एव बदह-तव देमि मल्लिं विदेहरायवरकण्ण तिकट्ट सझाकालममयसि पविरलमणूससि निसतसि पडि निसतसि पत्तेय२ मिटिल रायहाणिं अणुप्पवेसेर ) वह दूत जाकर उन प्रत्येक से ऐसाकहे कि हम अपनी पुत्री विदेह राजवर कन्या मल्ली कुमारी तुम्ह देंगे। ऐसा कहकर ( दूतो से कहलवा कर) फिर उन राजाओं में से प्रत्येक राजा को आप ऐसे सध्याकाल के समय में-जर कि सूर्य बिलकुल अस्त हो गया हो-रात्रि का समय आ गया-हो मार्ग मे भी कहीं कही पर ही थोड़े से मनुष्य का सचार हो रहा हो-मकान भी मनुष्यो की कल कल ध्वनि से रहित हो चुके हो-सयो के निद्राधीन बन जाने से जिन में से जन ध्वनि रिलकुल ही नहीं प्रकट हो रही हो अपनी मिथिला नगरी में घुलवाई ये-उन्हें प्रवेश कराईये (अणुप्पवेसित्ता गम्भघरएसु अणुप्पवेसेह, मिहिलाए रायाणीए दुवाराइ पिहेह पिहिता रोहसज्जे चिट्ठह तण्ण कुभए एचत चेव जाव पवे सेह, रोरसज्जे चिटइ ) प्रवेश करवा कर उन्हें आप गर्भ गृहों में-ठहरा दीजिये। (एगमेग एच बदह तव देभि मल्लि विदेहरायवरवण्ण तिकटु सझाकाल समयसि पनिरलमणूससि निसतसिं पडिनिसतसि पत्तेय २ मिहिल रायहाणि अणुप्पवेसेह) તે દૂત તેમની પાસે જઈને દરેકને આ પ્રમાણે કહે કે અમારી કન્યા વિદેહરાજવર કન્યા મલીકુમારી તમને આપીશુ આ પ્રમાણે દૂત વડે દરેકની પાસે સ દેશ મેકલીને તે રાજાઓમાથી દરેકને તમે સ ધ્યાકાળના સમયે જ્યારે સુરજ ખબર અસ્ત થઈ ગયે હિય રાત્રિને વખત થઈ ગઈ હોય, માગમા બહુ જ ચેડા માણસેની અવર જવર થવા માંડી હેય, માણસના ઘોઘાટથી ઘરે પણ જ્યારે રાત થઈ ગયા હોય ત્યારે મિથિલા નગરીમા બોલાવે (अणुप्पवेसित्ता गम्भघरपसु अणुपवेसेह, मिहिलाए रायहाणीप दुवाराइ पिहित्तारोहमज्जे चिट्ठह तण कुभए एव० त चेव जाव पवेसेह, रोहसज्जे चिट्ठा) બેલાવીને તેને તમે ગભ ગૃહમા રેકો
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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