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________________ ४६ জানাঘমকথা चोक्षा परिनानि का 'मिसिय' पिका= जामन स्वकीयमितिमात्र , गृह्णाति गृहीत्वा 'कण्यतेउराभो' कन्यान्तः पुरात् मल्ल्या भानाव, प्रतिनिष्कामति निः सरति, प्रतिनिष्क्रम्य मिथिलातो निर्गति, निर्गत्य परिचाजिश सपरिखता भविरलसन्यासिकाभिर्युक्ता, योर पञ्चालजनपदः पश्चालनामको देशोऽस्ति, यत्रैप-यस्मिन् देशे काम्पिल्यपुर नाम नगर, तर= तस्मिन् नगरे उपागच्छति, उपागत्यच काम्पिल्यपुरे नगरे हुना राजेश्वरादीना पुरन. स्वमत यावद्-आख्या पयन्ती प्रज्ञापयन्ती मरूपयन्ती विहरति आस्तेस्म ॥ सू० ३०॥ मूलम्-तएणं से जियसत्तू अन्नदा कयाई अंतेउरपरियाल सपरिवुडे एव जाव विहरइ, तएणं सा चोखा परिवाइया सप - - - - - उस ने उसी समय वहा से अपना आमन उठाया-और उठाकर वह कन्यान्तः पुर से-मल्ली कुमारी के भवन से पाहिर निकल आई। (पडि निक्खमित्ता)चाहिर निकलकर (मिहिलामो निग्गच्छड, निग्ग च्छित्ता परिवाइया सपरिघुडा जेणेव पचाल जणवए, जेणेव कपिल्लपुरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कपिल्लपुरे वहण राईमर जाव पख्वेमाणी विहरइ ) फिर वह मिथिला नगरी से चल दी। चलकर परिव्राजिकाओं को साथ में लिये हुए जहा पाचाल देश और उसमें जहा कापिल्य नगर या वहां आई। वहा आकर वह अपने मत की अनेक राश्वजेर आदिको के समक्ष आख्यापना और प्ररूपणाक रती हुई रहने लगी। सू० ३०॥ તેણે તરત જ પિતાનુ આસન ત્યાથી ઉપાડી લીધુ અને કન્યાન્ત પુરથી सटले भरसी भारीना मावशी ते महा२ नीजी 5 (पडिनिक्समित्ता) બહાર નીકળીને (महिलाओ निग्गन्छड निग्गच्छित्ता परिवाइया सपरिवुडा जेणेव पचाल जणवए, जेणेव कपिल्लपुरे नयरे तेणेव उवागच्छइ उवागन्छित्ता कपिल्लपुरे बहूण राई सर० जाव परूवेमाणी विहरइ) તે મિથિલા નગરીમાથી ચાલતી થઈ પરિવાજિકાઓની સાથે તે ચાલતી ચાલતી છે ત્યા પાંચાલ દેશ અને તેમાં પણ જ્યા કોપિલ્યનગર હતું ત્યાં આવી ત્યા આવીને તે પિતાના ધર્મની ઘણું રાજેશ્વર વગેરેની સામે આખ્યાપના, પ્રજ્ઞાપના અને પ્રરૂપણ કરતા २२१। बाजी ॥ सूत्र "30" ॥
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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