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________________ ३॥ Wলাঘব दीप्यमाने भास्वरे, लोचने यस्स स तथा तम्, मानारवत्पदीप्तने मित्यर्थः, तथा ='भिउडितडियनिडाल ' भ्रफुटितडिल्ललाट-श्रुटि:- भूपता कोपकता सैर तडिद् यस्मिन् , तथाविध ललाट, भाल यस्य स तथा तम् कोपावेपेन विद्युत्सदश भूसमुलसितललामयुक्तमित्यर्थः । तथा-'नरसिरमालपरिणविध 'नरशिरोमाला परिणद्धचिन्ह-नरशिरोमालैय परिणद्ध-परिधृत चित-पिशाचत योधक लक्षणयेन स तथात=नरतुण्डमाला धारिणमित्यर्थः । तथा-'पिचित्तगोणसम्बद्धपरिवर' विचि प्रगोनसमुपद्धपरिकर-विचिन बहुवर्णकयुक्तः, गोनसै' सर्पविशेपैः, मुबद्धः परि फर कवचो येन स तथा तम्, 'अाहोलतपुप्फुयायतसप्पविच्छुय गधु दरनउलसरड विरइयविचित्तवेयच्छमालियाग' अधोलयत् फुत्युत् सर्पटश्चिकगोधोन्दुरनकुल सरटविरचितविचित्रकक्षमालिक-अधोलयन्तः किंचिम् प्रसर्पन्त' पूत्कुर्व तय ये सर्पाः दृश्चिकाः गोधा उन्दुरा नकुलाः सरटाश्च तैविरचिता विचित्रा विविध वर्णवती, वैकक्षमालिकास्कन्धलम्बितमाला यस्य स तथा तम्, स्कन्धदेशे फुत्कार ( पिंगलदिप्पतलोयण, भिडितडियनिटालनरसिरमालपरिणद्ध चिंध विचित्तगोणससुबद्धपरिकर अपहोलतपप्फुयाय तसप्प विच्छय गोघदनउलसरडविरइय विचित्तवेयच्छमाल योग) इस की दोनों ऑखे मार्जार (बिल्ली की तरह पीली और चमकीली थी। इस का ललाट भू वक्रता रूप विजली से युक्त था इस ने पिशाचत्व के को धक नरमुडकी माला रूप चिह्न को धारण कर रखा था। इस ने जो कवच पहिरा हुआ था-वह अनेक वर्णवाले सो से व्याप्त हो रहा था। अथवा-कवचके स्थानापन्न इस ने विविध वर्णवाले सो को अपने शरीर पर धारण कर रक्खा था। स्कध देश में, इधर उधर, सरकते हए तथा फुत्कार करते हुए सपों की, वृश्चिकों की, गोंहों की, उन्दुरो की, नकुलो की, सरटों की, विविध __ (पिंगलदिप्पतलोयण भिउडितडियनिडाल नरसिर-मालपरिणद्ध चिंध विचित्तगोणससुवद्धपरिकर अवहोलतपप्फुयायतसप्पविच्छुयगोधदरनउलसरडविरइय विचित्तवेयच्छमालयाग) તેની બને આ બિલાડાની જેમ પીળી અને ચમકતી હતી વક્રિભૂ (ભમ્મર ) રૂપ વીજળીથી તેનું કપાળ યુકત હત પિશાચ પણાના પ્રમાણ રૂપે તેણે નરમુડની માળા પહેરેલી હતી ઘણાર ગના સાપેથી તે આણિત હતા અથવા કવચના સ્થાને તેણે જાતજાતના ૨ ગવાળા અનેક સાપને શરીર ઉપર ધારણ કરેલા હતા ખભા ઉપર આમતેમ હિલચાલ કરતા એટલે કે સરકતા તેમજ ફાર કરતા સાપ, વીછીએ, ઘ, ઉદર, નેળિયાએ, અને સરની અનેક રંગો .
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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