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________________ 7 अगरणी टीका अ० ८ अङ्गराजचरिते तालपिशाचचणनम् ३४७ युक्तप्रसर्पत्सर्पादिमालाधारिणमित्यर्थं । तथा-' भोग कूरकण्हसप्पधमप ने तल तकन पूर' भोगक्रूर कृष्णसर्प मनमायमानम्यमान कर्णपूरम् = भोगें. =फणैः क्रूरा भयकरौ भोगकरो, तोच कृष्णसर्पे च भोगक्रूरकृष्णासर्पों, तौ च धमवमायमानौ फुत्कुर्वन्तौ तावेव लम्पमाने कर्णपूरे कर्णालङ्कारविशेषौ यस्य स तथा तम्, तथा - परिवृत कृष्णसर्प कर्णभूषणमित्यर्थ 'मज्जारसियाललइयखध माजीरशृगाललगितस्कन्नमू=मार्जा रशुगालाल गिता सयोजिताः स्कन्धयोर्येन स तथा तम्, 'दित्तधुधुयत धूयकप कुतलसिर' दीप्तधुधुकधुककृतकुमलशिरस्कम् = दीप्त - दीप्तस्वर यथाभवत्येव शद कुर्वन्तो यो घृका - उलूका तएव कृतः कुम्मलः शेखरकः शिरोभूषण शिरसि येन स तथा तम्, शब्दायमानोलूरुशिरोभूषणधारिणमित्यर्थः तथा-घटारवेण भीम= भयकरम् घण्टानां शब्देन भीम भयकरम्, अतिभयानकम्, तथा-' कायरजणहिययफोडण ' कातरजनहृदयस्फोटनम् = कातरजनानां भीरुजनाना यानि हृद } , वर्ण सपन्न माला उस ने पहिरी हुई थी । ( भोगकर कण्हसप्पद्यम घमेत वतनपूर ) कर्णपूरो के स्थान पर इसने फणावलि से भयकर बने हुए, तथा फुत्कार करते हुए काले दो सर्पों को पहने रखे थे । ( मज्जारसियाल लइय खघ ) अपने दोनो स्कन्धों पर इसने मार्जार और शृगालो को बैठा रखा था । (दित्तधुघुयतधूयकयकुतल सिर) दीप्त स्वर जिस तरह से हो इस तरह से घू घू करते हुए उल्लुओं को इस ने अपने शिर का आभूषण-मुकुट बनाया था । ( घटारवेण भीम भय कर कायरजणहियप फोडण दित्तमत्तहहरास विणिम्मुयत वसारुहिरपूयम समलमलिणपोच्चडतणु ) घटाओ के शब्द से यह भयकर बना हुआ था। कातरजनों के हृदय का भयजनक होने से यह विदारक बना , वाजी भाषा तेथे पडेरेसी हती (भोगकरकण्ड्सप्प मधमें तलवतकन्नपूर ) 33લેાના સ્થાને તેણે ફ્યુાએથી ભયકર તેમજ ફુત્કાર કરતા એ કાળા સાપા પહેरेसा हुता (मज्नार सियाललइ यसघ) पोताना मने मला उपर तेथे मिसाडा भने श्रृगासने मेभाउता उता (दित्तधुधुयत धूयकयकु तलसिर ) भोटा साहे ' 'धू' ધૂ’ કરનાર વડાને તેણે પેાતના માથાના આભૂષણુ એટલે કે મુકુટ બનાવ્યા હતા (घटारवेग भीम भयकर जगद्दिययफोडण दित्त महावित वसारूहिरपूयमममलमणि पोच्चडतणु ) ઘટના ભીમ ધ્વનિથી તે ભયક લાગતા હતેા કાતર જનેને હૃદયના ક્ષયથી વિદીણું કરનાર હેાવાથી તે ‘વિદારક' હતા વાર વાર તે મહા ભયકર ઉગ્ન
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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