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________________ ३४२ माताधर्मस्थाले सरासिमहिसकालगं' भ्रमरनिफरसरमापराशिमहिपकारक-तत्र भ्रमरनिकर एकभ्रमरसमूह इस परमापरापिरिच, महिप इस च यः कालका-कृष्णवर्णकस्त, 'भरि यमेहान्न' भृतमेघवर्ण-जलपर्णमेघघटादतिनीलम् , 'मुप्पणह नम्व शूर्पवत् नखा यस्य स सूर्पनखस्त, फालमहानिहाय, फालमिदाग्नी मतापित बोयम् , तत्सादृश्य च वर्णदेयदीप्स्यादिभिरिति, रम्बोष्ठ-दीघौंठ, 'घालपट्ट अमिलिट तिखथिरपीणकुडिलदाढोरगृढययण ' धवलत्तालिटतीक्ष्णस्थिरपीनकुटिलद प्ट्रोपगृहबदन' धालाभिः श्वेताभिः, वृत्ताभितलामिरशियाभिविरलाभिः ती क्ष्णाभिः स्थिराभिद्रढाभिः उपचितत्वेन पीनागिस्लामिः उत्तया कुटिलाभिश्च दष्याभिरूपगूढ व्याप्त वदन यस्य स तथा तम् अविविशालदष्ट्रमित्यर्थः, 'विको सियधारासिजुयलसमसरिसतणुय चचलगलतरसलीलचनपुरुफुरतनिल्लालियग्गजीह' विकोशितधारासियुगल समसदृशतनु कचश्चलगलद्रसलोलचालफुरफुरायमाण निर्लालिताग्रजिहम् , तर रिकोशिता अपनीतावरणा धारा ययोस्तौ विकोशित शिर के बाल वधन रहित होने से इधर उधर विग्वरे हुए थे ! इस का वर्णभ्रमर समूह उडद की राशि और महिप के शृग जैसा काला था। (भरिय मेहवन्न ) जल से भरी हुई मेघ घटा के समान अत्यन्त श्याम था। (सुप्पणह, फाल सरिस जीह लयोह, धवलवट्ट आसिलिट्ट तिक्ख थिर पीणकुडिलदाढोवगूढवयण) नख इस के सूप (सूपड़ा) जैसे थे। जिह्वा इस की अग्नि में लाल किये गये फाल के समान थी। ओष्ठ लवे २ थे । इसका मुख श्वेत, गोल, २ विरली, नुकीली, स्थिर-दृढ-स्थूल और कुटिल टेढी २ दाडों से युक्त था । (विकोसिय धारासिजुयल समसरिमतणुय चचल गलत रस लोल चवलफुरुफुरेंत निल्लालियग्गजीह ) इस की जिह्वा दोनों अग्र આમતેમ વિખેરાઈ ગયા હતા તેને રગ ભમરાઓના ટેળા, અડદને ઢગલે अने पाना शिंगा वो आज तो " भरिय मेइवन्न " पाया मरेती મેઘની ઘટાઓની જેમ ખૂબજ કાળે હિતે (मुप्पणह, फालसरिमजीह लगोढ, धवलबह, आसिलिट्ट, तिक्खथिरपीण कुडिलदाढोनगूढपयर्ण) તેના ને સૂપડા જેવા હતા તેની જીભ અગ્નિમા લાલચેળ થઈ ગયેલી હળની કસ જેવી હતી તેના હોઠ લાવ્યા હતા તેનું મો સફેદ ગળ મટેળ અણિયાળી, મજબુત મોટી તેમજ કુટિલ ત્રાસી દાઢે વાળુ હતુ ___ ( विकोसिय धारासियजुयलसमसरिसतणुय चचलगलतरसलोलचवलपुर फुरेंत निल्लालियग्गजीह)
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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