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________________ - ३३२ থানায়কথায় जयरवेण उच्चस्तरयुक्त जय जय घनिता मसुभितमहाममुद्रवभूतामिव वायु मक्षोभननितमहासागरध्वनिव्यासामिव मेदिनी = पृषि प्रचुरनादवती कुर्वाणा एकदिशे एकस्या दिशि सयानानीका नाणिजका नाप नौकायान दुरूवाः आरोहति स्म । ततस्तदनन्तर 'पुम्समाणो' पुप्पमानर मागधो मगल पाठकः 'वकमु. दाहु' वास्यमुदाह-मगलाचनमुक्तवान् तदाह-हभी इत्यादि हे नौकायात्रिका 'सन्वेसिमनिभे' सर्वेपामपि युप्माकम् अर्थसिद्धयो भवतु, उपस्थितानि कल्या णानि भनन्तु तथा प्रतिहितानि सर्वपापानि भवन्तु-पर्वविघ्ना प्रतिहता विनष्टा भनन्वित्यर्थ । 'जुत्तो' युक्तः 'पूमो' पुष्प:=पुष्पाख्यो नक्षतविशेषः अनक लेन चन्द्रमसा युक्त इत्यर्थः । पुष्पनक्षा यात्राया प्रशस्तम् तथ चोक्तहणायजयरवेण पक्खुभित्तमहासमुद्दरवभूयपिव मेहणि करेमाणा) उत्कृष्ट सिंहनाद जैसी जय जय वनि से वायु के प्रक्षोभ से जनित महासागरकी ध्वनि से व्याप्त हुई की तरह मेदनी को करते हुए (सज्जु त्ता नावा चाणियगा एगदिसिं णाव दुरुढा) वे सायात्रिक पोत वणिक् नोव पर सवार हुए। (तओ पुस्समाणवो वक्कमुदाह) इतने में ही मगल पाठक-चारण-ने मगल ध्वनि की (हभो सव्वेसि भविभे अत्यसिद्धीओ उहि ताइ कल्लाणाइ, पडिया सव्व पावाइ, जुत्तो पूसो, विजओ मुहुत्तो अयदेसकालो) हे हे नौका यात्रिकों ! आप सरको अर्थ की सिद्धि हो, सब कल्याण आपके लिये सदा उपस्थित रहें, समस्त प्रकार के विन आपकी इस मागलिक यात्रा में नाश हो पुष्प नक्षत्र का अनुकूल चन्द्रमा के साथ योग रहा है यात्रा मे पुष्प नक्षत्र का योग प्रशस्त होता (महया उक्किासीहणायजयरवेण पक्खुभित्तमहासमुदरवभूय पिव मेइणि करेमाणा) પવનથી–સુબ્ધ મહાસાગરના સર્વત્ર વ્યાપ્ત થયેલા વનની જેમ સિંહનાદ न्य य पनिथा पृथ्वीन शधि ४२ता (मुज्जुत्तानावा वाणियगा एगदिसिंणाव दुरूढा) ते समये भागलिग सेट है या२। म पनि यो (हभो सब्वेसिमविभे अत्यसिद्धीओ उवहिताइ कल्लागाइ पडियाइ सधपावाइ, जुत्तो पूसो विजओ मुहुत्तो अयदेसकालो) હે પિતવણિકે ! તમને બધાને અર્થની સિદ્ધિ થાય તમને સદા કલ્યાણે પ્રાપ્ત થાઓ, મગળયાત્રાના તમારા બધા વિનાશ પામે અત્યારે ચન્દ્રની સાથે પુષ્યનક્ષત્રને અનુકૂળ રોગ થઈ રહ્યો છે ( યાત્રામાં પુષ્યનક્ષત્રને યોગ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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