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________________ ३२० मानाधर्मकथा 4 sfroयेन प्रमुदितो भूला प्रतिशृणोति आज्ञामहीषरोति, प्रतिश्रुत्य = स्वीकृत्प यत्रेव र गृह व चातुर्धष्टोऽश्वरथो वर्तते तत्रोपान्नति उपागस्य चातु fष्टमश्वरथ प्रतिपल्पयति सज्जयति प्रतिरप्य चातुर्घष्टमश्वरथ सज्जीकृस्प दृस्ट =समारूढः सन यावत्- हयगजमहामट चटयरेण सहितः साकेतात् साकेत नगराट् निमच्छति, निर्गत्य कौन विदेहजनपदः यच मिथिलानगरी तत्रत्र प्रषारयति गमनाय गतु प्रवृत्त प्रस्थित इत्यर्थः । इति प्रतिद्धिनामकस्य राशः सम्ब न्धः कथितः ॥ सू० १७॥ जेणेव घाउटे आसरहे तेणेच उथागच्छष्ट ) स्वीकार कर पहिले वह अपने घर गया | वहा जाकर फिर वह जशं चार घटो से युक्त अश्वरथ रखा था वहाँ गया (उद्यागच्छित्ता चाउ घट आसर पडिक पावेह ) वहां जाकर उम ने उसे चातुर्घट रथ को अच्छी तरह सज्जित कर वाया (पडि कप्पाविता दुरुढे जान हम गय महया भडचड गरेण साण्याओणि गच्छइ ) जय रथ अच्छी तरह सज्जित हो चुका तो वह बाद में उस पर आरूढ़ हुआ और हय, गज, महाभटों के समूह से युक्त होकर साकेत नगर से बाहर निकला ( णिग्गच्छित्ता जेणेव विदेह जणवए जेणेव मिहिला रामराणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए निकल कर फिर वह जहा विदेह जनपद और उस में भी जहा वह मिथिला राजधानी थी उस ओर चल दिया । सूत्र 16 १७ ܝܕ હતિ તેમજ સતુષ્ટ થયા અને તેણે મિથિલા રાજધાની જવાની રાજાની माझा स्वोझरी ( परिमुणित्ता जेणेव सए गेहे जेणेव घाउग्धटे आसरहे तेणेत्र उपागच्छइ ) स्त्रीशरीते को पहेला पोताने घेर गये। ઘેર પહ।ચીને તે જ્યા ચાર ઘટડીએ વાળે! અશ્વરથ મૂકેલા હતા ત્યાં ગયે (चिपटे आसरह पडिकप्पोवेइ ) त्या रहने तेषु यातुर्घट રથને સારી પેઠે શણુગાન્યે (पडिकाविता दुरूढे जात्र हयगय महया भडचडगरेण साएयायो णिगच्छ इ) જ્યારે રથ સારી રીતે તૈયાર થઇ ગયા ત્યારે તેના પર સવાર થયા અને હાથી ઘેાડા મહાભટોના દળની યાદ્ધાએની સાથે સાથે સાકેત નગરથી મહાર નીકખ્યા ( णिगच्छित्ता जेणेव निदेद्द जणवए जेणेव महिला रायहाणी तेणेत्र पहारेस्थ गमगाए ) નીકળીને તે જે તરફ વિદેહુ જનપદ અને મિથિલા રાજધાની હતી ते तर गयो । सूत्र “१७" ॥
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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