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________________ 200 ज्ञाताधर्मकथनसूत्रे इति वा, घृकमृतक इति या, द्वीपिमृतक इति वा, हतिन्जया, पां मृतसपौदि कलेवराणा दुर्गन्धः खलु यादृशोऽनिष्टः प्रादुर्भयति 'एसो ' एतस्माद् 'अणि छतराए ' अनिष्टवर अधिकस्तीत्रः, अतएव ' अमणामतराए ' अमन आमतर = मनसोऽति प्रतिकूलो दुर्गन्धस्तस्याः पुत्तलिकाया अभवदित्यर्थ ॥ ० १४ ॥ मूलम् - तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसलणामं जणवए, तत्थ णं सागेए नाम नयरे, तस्स णं उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं मह एगे नागघरए होत्था दिव्वे सच्चे सच्चो वाए संनिहियपाडिहेरे, तत्थ ण नयरे पडिवुद्धिनामं इक्खागुराया परिवसइ, पउमावई देवी सुबुद्धी अमच्चे सामदडभेयकुसले, तएण पउमावईए देवीए अन्नया कयाइ नागजन्नए यावि होत्था । तएणं सा पउमावई नागजन्नमुवट्टिय जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहिय सिरसावत दसनह मत्थए अंजलि कट्टु एव वयासी - एव खलु सामी । मम कल्ल नागजन्नए यावि भविस्सइ, त होती है, मरे हुए हाथी के सडे कलेवर की होती है, मरे हुए सिंह के सडे कलेवर की होती है, मरे हुए व्योघ्र के सडे कलेवर की होती है घृक और द्वीपि के सढे कलेवर की होती है । इन मृत सर्पादिकों के सडे हुए कलेवरों की दुर्गंध जिस प्रकार अनिष्ट होती है उसी प्रकार इससे भी अनिष्टतर वह पुतलिका से निकलती हुई दुर्गंध थी- अमन आमतर थी मन को जरा सी भी रुचे ऐसी नही थी किन्तु मन के अतिसर्वथा प्रतिकूल थी । सूत्र 66 १४ " મરીને સડી ગયેલા સિંહના શરીરના જેવી, મરીને સડી ગયેલા વાઘના શરીરના જેવી મરીને સડી ગયેલા વરુ અને દીપડા (દ્વીપિ)ના શરીરના જેવી, મરીને સડી ગયેલા સાપ વગેરેના શરીરના જેવી અનિષ્ટકારી દુધ હાય છે તેવી જ અને તેના કરતા પણ વધારે અનિષ્ટતર પૂતળીમાથી નીકળતી દુર્ગંધ હતી મનને એકદમ અણુગમે થાય તેવી સથા પ્રતિકૂળ તેમાથી नीडजती दुर्गध ती ॥ सूत्र “ ६४ " ॥ ८८
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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