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________________ अनगारधर्मामृतपिणी टीका म०८ मणिमयपुत्तलिकानिर्माणादिनिरूपणम् २९९ मय्या यावत् मस्तकन्छिद्राया प्रतिमायामेकैकस्मिन् पिण्डे प्रक्षिप्यमाणे प्रक्षिप्य माणे सति ' तओ' ततः तस्या पुत्तलिकाया सकाशाद् गधा-दुर्गन्धः पाउभवइ ' प्रादुर्भरतिबहिनिस्सरति स्म । सदृष्टान्त पुत्तलिका वर्णयति-तद् यथानामकम् यथा दृष्टान्तम्-' अहिमडेइ वा ' अहिमृतक इति वा यावत्-अत्र यावच्छ ब्देन- गोमटेड वा, सुणगमडेद वा, मज्जारमडेइ वा, मणुस्समडेइ वा, महिसमडेइ वा, मूसगमडेइ वा, आसमडेइ वा, हथिमडेइ ना सीहमडेइ वा, वाघमडेइ वो, विगमडेइ वा, दीविमडेइ वा, इति सड्ग्रहः ' गोमृतक इति वा, शुनकमृतक इति वा, मार्जारमृतक इति वा, मनुष्यमृतक इति वा, महिपमृतक, इति वा मृपकमृतक इति वा, अश्वमृतक इति वा, हस्तिमृतक इति वा, सिंहमृतक इति वा, व्याघ्रमृतक तीसे कणगमत्तीए जाव मच्छयाउड्डाए पडिमाए एगमेगसि पिंड पक्खिप्पमाणे २ तओ गधे पाउन्भवइ ) इस प्रकार करते करते उस सुवर्ण मयी पुत्तलिका मे मस्तक के छेद द्वारा पिंड पहुँच ने पर उस पुत्तलिका से दुर्गन्ध निकल ने लगी। (से जहा नामए अहिमडेइ वा जाव एत्तो अणिट्टतराए अमणाम तराए ) वह दुर्गध ऐसी थी-जैसी मरे हुए सर्प के सड जाने की होती है । यहाँ यावत् शब्द से “गोमडेइ वा, सुणगमडेइ वा" इत्यादि का संग्रह हुआ है। इसका अर्थ इस प्रकार है-वह दुगंध गाय के मरे हुए सडे कलेवर की होती है मरे हुए कुत्ते के सडे कलेवरकी होती है, मरे हुए चिलोष के सडे कलेवर की होती है, मनुष्य के मरे हुए सडे कलेवर की होती है, महिप के मरे हुए सडे कलेघर की होती है, मरे हुए चूहे के सडे कलेवर की होनी है, मरे हुए घोडे के सडे कलेवर की भाथाना अ नामती (तएण तीसे कणगमत्तीए जाव मन्छय छिड़ाए पडिमाए एगमेगसि विंडे पक्खिप्पमाणे २ तओ गधे पाउभनइ) मारीत सोनानी भूतजीमा ४२२४ मे से जीये. नवाथी तभायी हु नीsman दास ( से जहा नामए अहिमडेइ वा जाच एत्तो अणि?तराए अमनामतराए) भरेक्षा भने सहा सापना रवी ते सपती मडी यात्रत ७४थी 'गोमटेइवा, सुणगमडेवा' વગેરેને સગડ થયો છે અને અર્થ આ પ્રમાણે થાય છે કે મરીને સડી ગયેલા ગાયના શરીરના જેવી મરીને મડવા માંડેલા કૂતરાના શરીરના જેવી મરીને સડવા માડેલા બિલાડાના શરીરના જેવી, મરીને સડતા માણસના ડારીરના જેવી, મરીને સડતા પડાના શરીરના જેવી, મરીને સડના ઉદરના ગરીરના જેવી, મરીને સડતા ઘેડાના શરીરના જેવી, મરીને સડી ગયેલા હાથીના શરીરના જેવી,
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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