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________________ माताधर्मकथासूत्रे टीका- 'तरण सा ' इत्यादि । ततस्तदनन्तरं सा वमलश्री राज्ञी महाबलस्य भार्या, अन्यदा अन्यस्मिन् काले सिहं सप्ने दृष्टा मतिबुद्धा । यावत् वलभद्रः कुमारी जात अत्र यावतरणेनायमर्थोऽयगन्तव्य - सा स्वप्नवृत्त भर्तुर निषेदयति ततः स्वप्नपाठकमुखात् स्वप्नफलश्रवण यावत् तदनन्तर सा गर्भवती जाता. सपूर्णेषु मासेषु बलभद्रनामकः कुमारः उप्तन्न इति । स युवराजश्वाप्यमवत् । तस्य खलु महावलस्य राज्ञ इमे = वक्ष्यमाणा पडपि च वालवयस्यका वालमित्राणि तएण सा कमलसिरी ' इत्यादि । टीकार्थ - (तएण ) इसके बाद (सा कमलसिरी ) महाबल राजा की रानी कमल श्री ने (अन्नया) किसी एक समय (सीर) सिर को (सुमिणे) स्वप्न में ( जाव बलभद्दो कुमारो जाओ ) देखा और देख कर वह प्रतिबुद्ध हो गई- ई-जग गई । यावत् उस के बलभद्र कुमार उत्पन्न हुआ यहा यावत् शब्द से इस पाठ का संग्रह हुआ है-कमल श्री ने स्वप्न में जो सिंह देखा था उस स्वप्न को उस ने अपने पति महाबल से कहामहाबल ने स्वप्नपाठकों को बुलाया उन्हो ने इस दृष्ट स्वप्न का क्या फल है यह बात उसे सुनाई । सुनकर सब को बडा आनन्द हुआ । कमल श्री गर्भवती हुई । नौ मास साढ़े सात दिन जब गर्भ को पूर्ण हो गया तब कमल श्री के बलभद्र नाम का कुमार उत्पन्न हुआ । 1 ( जुवराया यावि होत्था ) धीरे २ वह कुमार युवराज भी बन गया । ( तस्स ण महाबलस्स रन्नो इमे छप्पिय बालवयसगा रायाणी होत्था ) 'तएण सा कमलसिरी' त्याहि अर्थ - (तएण ) त्यारमाह (सा कमलसिरी) भडाभस राजनी राशी उभा श्रीओ (अन्नया ) अ भे वमते ( सीह ) सिडने (सुमिणे) स्वप्नभा (जाव बलभद्दो कुमारी जाओ) लेयो भने लेने से लगी ગઈ ‘યાવત્' સમય જતા તેને ખલભદ્ર નામે કુમાર જન્મ્યા અહીં યાવત્' શબ્દથી આ પાઠનો સગ્રહ થયા છે કે-કમલશ્રીએ જે સ્વપ્નમા સિંહ જોયેા હતેા તે સ્વપ્ન વિષેની ચર્ચા તેણે પેાતાના પતિ મહાબલને કી મહાબલે સ્વપ્નપાકાને ખેલાવ્યા સ્વપ્નપાઠકોએ તેને સ્વપ્નનુ ફળ ખતાવ્યું. સ્વપ્નફળને જાણીને બધાને ખૂબજ આનદ થયે કમળશ્રી સગર્ભા થઈ ગર્ભને જ્યારે નવમાસ અને સાડા સાત દિવસ પૂરા થયા ત્યારે કમળશ્રીના ઉદરથી અલભદ્રનામે કુમારના જન્મ થયે ( जुवराया यवि होत्या ) समय पसार थता कुमार सभद्र युवरान पशु गया (तरक्षण महाबलस्स रन्नो इमे छप्पियबालवय स्वगा रायाणो होत्था ) મહાખલ રાજાને ૬ ખાલમિત્ર રાજાઓ પણ હતા
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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