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________________ अनगारधर्मामृतपिणी टीक अ0 9 धन्यसार्थवाहचिरितनिरूपणम् २०७ चिह्नन चिह्निताः,मुद्रिता =नाममुद्रादिनाऽवितास्तान् कुर्वन्ति, कृता 'कोट्ठागारस्स' कोष्ठागाहस्य एकदेशे स्थापयन्ति, स्थापयित्वा सरक्षन्तः सगोपायन्तो विहरन्ति । तत. खलु ते कौटुम्बिका द्वितीये वाराने द्वितीयर्पसम्बन्धि चातुर्मास्यकाले प्रथमप्रापि प्राट् प्रारम्भसमये महारप्टिकाये निपतिते महावर्षायां सत्या क्षुल्लक केदार सुपरिकम्मियं ' सुपरिवर्मित-विशिष्ट लक्ष्णमृत्तिकादिदानेन हलकुदागदिनोत्खनने च सस्कारित कुर्वन्ति, कृत्वा तान् शालीन वपन्ति 'दोच्च पितञ्चपि' द्विरपि निरपि-द्वित्रिपारमापि' उपवयनिहए ' उत्खातनिहतान् उत्पाटिनरोपितान् यावत् लुनन्ति, यावत् चरणतलमृदितान् कुर्वन्ति, कृत्वा पुनन्ति से चिह्नित कर उनपर नामकी मुहर लगा दी । पश्चात् भडार में उन्हें एक ओर रख दिया । समय २ पर वे लोग उनकी रक्षा और सभाल भी करते रहे। (तएण ते कौडविया दोच्चपि वासारत्तसि पढम पाउससि महाधुटिकायसि निवइयसि खुट्ठाग केयार सुपरिकम्मिय फरेति) इसकेबाद उन कोटुम्विक पुरुपोने द्वितीय वर्ष समन्धी चौमासा जय लगा -तव-सर्व प्रथम मवृष्टि के रूप में जल के यरस जाने पर, हल से जोत कर तथा कुद्दाल आदि से खोदकर एक छोटा सा खेत तैयार किया। उसमें चिकनी और नरम मिट्टी डालकर उसे बहुत ही अच्छा शालि उपजाने के योग्य बना दिया । (ते शोलि वपति, दोच्यपि तच्चपि उक्खय निदए जाव लुति ) यादमें उस शाली को उसमें वो दिया। पहिले की तरह जब वह धान्य अकुरित हो आई तब उन्होंने उसे वहा से उखाड कर दूसरी जगह आरोपित कर दिया । इस तरह यह भूती दीया यथा समय तसा तभनी समाण ५ मत 8ता (तपण ते कोड बिया दोच्चचि वासारत्तसि पढम पाउससि मह वुढिकायसि निवइयसि खुड्डाग के यार सुपरिकम्मिय करेंति) या२ ५७। अनि पुरुवारी 1 4 ચેમાસાના દિવસે આવ્યા ત્યારે સૌ પહેલા મહાવૃષ્ટિના રૂપે જળવર્ષા થયા બાદ હળથી ખેડાને તેમજ કોદાળી વગેરે થી ખોદીને એક નાનું ખેતર તૈયાર કર્યું જેમાં ચીકણી અને કમળ માટી નાખીને તેને ખૂબ જ સરસ વાલિ (१२) पा११। यो नापी धु (ते सालीवपति, दोच्चपि तच्चपि उक्सयनिहए जाव लुणेंति) त्या२ पछी भेतरमा शालिनी धा પહેલાની જેમ જ્યારે શાલિના અકરો બહાર નીકળ્યા ત્યારે કૌટુંબિક માણસ એ તેના છેડેને ત્યાથી ઉપાડીને બીજા સ્થાને રેપી દીપા આ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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