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________________ अनगारधर्मामृतर्पणी टीका अ० ७ धयसार्थवाहचरितनिरूपणम् १९७ वावेह वावित्ता दोच्चापि तच्चपि उक्खयनिहए करेह करिता वाडपक्खेव करेह करिता सारखखेमाणा संगोवेमाणा अणु पुवेणं संवह । तणं ते कोडुविया रोहणीए एयमट्ट पडिसुति ते पंच सालि अक्खए गिण्हति गिव्हित्ता अणुपुवेण सारखति सगोवति विहरति तपणं ते कोडुंबिया पढम पाउससि महावुट्टिकायसि णिवइयंसि समाणंसि खुड्डायं केयारं सुपरिकम्मियं करेंति करिता ते पंच सालि अक्खए ववति दुच्चपि तच्चपि उक्खयनिहए करेंति करिता वाडिपरिक्खेव करेति करिता अणुपुत्रेणं सारक्खेमाणा संगोवेमाणा सबड्डे माणा विहरति ॥ सू० ५ ॥ टीका- 'तएण से घण्णे ' ततस्तदनन्तर खलु स धन्यसार्थवाह ' तत्र ' तस्यैव मित्रादीन् यावचतुर्थी रोहिणिका स्नुपा शब्दयति, शब्दयित्वा 'जाब ' यावच्छब्देन यथा तृतीया रक्षिका शाल्यक्षतविषये चिंतयति तथैव रोहिणिकापि तएण से धण्णे ' इत्यादि । " टीकार्थ - (तरण) इसके बाद से घण्णे) उस धन्यसार्थवाह ने (तहेव मित्त जाव चउथि रोहिणीय सुण्ड सहावेइ ) उसी तरह मित्रादि परिजनों के समक्ष अपनी चतुर्थ पुत्रवधू कि जिसका नाम रोहिणी था उसे बुलाया (सद्दावित्ता जाव त भणियव्व ) बुलाकर उसे पाच शाल्यक्षत देकर उन्हे सुरक्षित रखने के लिये उससे कहा । श्वसुर की बात सुनकर जिस प्रकार प्राप्त शाल्यक्षतों के विषय में तृतीय पुत्रवधू रक्षिका ने विचार किया था उसी तरह इस चतुर्थ पुत्रवधू तरण से धण्णे ' त्याहि ! टी अर्थ - (तएण ) त्यार माह (से धण्णे ) धन्य सर्थवाडे (तक्षेत्र मित्त जाव थि रोहिणीय सुह सहावेइ) मा प्रभाऐ ४ भित्र वगेरे समधीयानी साभे पोतानी थोथी पुत्र वधू रोडियीने मोसावी ( सद्दावित्ता जाव त भणियव्व ) ખેલાવીને તેણે પાચ શાલિકણા આપીને તેઓને સુરક્ષિત રાખવા માટે કહ્યુ. સસગની વાત સાભળીને રાહિણીએ ત્રીજી પુત્રવધૂ રક્ષિકાએ જેમ વિચરશ કર્યાં તેમજ તે પણ આ વિષે ઘણી જાતના વિચારો કર્યા. છેવટે તે ८
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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