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________________ १९४ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे एजासि तिकट्टमम हत्थसि पच सालि अक्खए दलयइ त भवि यव्वमेत्थ कारणेणं तिक्हु एवं संपेहेइ सोहित्ता ते पंच सालि अक्खए सुद्धे वत्थे वधइ, वंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवे पक्खिवित्ता ऊसीसा मूले ठावेइ ठावित्ता तिसझ पडिजागर माणी विहरइ || सू० ४ ॥ टीका - एक भोगवतिकामपि - भोगवती नाम्नो स्तुपामध्याह्वयति नव 'सा' भोगवती श्वशुरदत्तपञ्चशालितणरूपानक्षतान् स्वस्थाने नीला 'छोल्लेइ ' तुपरहित करोति 'छोलिया ' निष्तुपीकृत्य ' अणुगिल्ड' अनुगिलति - भक्षयति, 'अणुगिलिता ' अनुगिल्य भक्षयित्वा ' जाया ' स्वकार्यसमयुक्ता जाताचा प्यासीत् स्वगृहकार्यकरणे लग्नाऽभवदिति भावः । एवमनेनैव मकारेण रक्षितामपि - रक्षितानाम्नीं तृतीया स्तुपामप्याहयति, आहूय तेन पचसख्याः शालिणा दत्ता, नवरसा तान् गृह्णावि, रम गृहीत्वा चायमेतद्रूप : ' अज्झत्थिए ' आ " एव भोगवतिया एवि ' इत्यादि । सूत्र टीकार्थ - (एच भोगवतियाए वि) उसी तरइ भोगवतिका नामकी अपनी पुत्रवधू थी उसे भी धन्यसार्थवाहने बुलाया (णवर) इसमें विशे पता केवल इतनी रही कि (सा छोल्लेइ) उसने उन शाल्यक्षतोंको अपने स्थान पर लेजाकर तुषरहित किया (छोरिलत्ता अणुगिलह ) और तुष रहित कर वहउन्हे खा गई ( अणुगिलित्ता जाया ) खाकर याद में अपने काम मे लग गई । (एव रक्खिया वि) इसी प्रकार धन्यसार्थवाहने अपनी तीसरी रक्षिता नामकी पुत्रवधू को बुलाया (णवर गेण्ड, गेव्हित्ता इमेयारूवे आज्झथिए० ) बुलाकर उसे मी पाच शालिकणो को दिया । एव भोगबतियाएवि ' इत्यादि " 7 अर्थ -- ( एव भोगवतियाए वि ) मा प्रभा धन्यसार्थ वाडे लोभवति । નોમની પેાતાની ભીજી પુત્રવધૂને ખેલાવી (ર) ભગવતિકાના વિષે વધારાનુ એ लधुवु लेहये जे ( सा छोलेइ ) तेथे शादिम्याने पोताना निवास स्थाने सर्व बहने तुष (शतरा) वगरना मनाना (छोल्लित्ता अणुगिलइ ) भने शातिशो नारा साइरीने तेभने माघ गर्ध ( अणुगिलित्ता जाया ) आधा पछी ते पोताना अभभा परोवार्ध ग ( एव रक्खिया वि) या रीते धन्यसार्थवाहे पोतानी भी पुत्रवधू रक्षिताने गोसावी ( णवर गेण्डर गण्हित्ता इमेयात्रे अज्झथिए ) मसावीने तेभने पशु पाय शासि आया रक्षित શાલિ -
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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