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________________ साधका समये राजगृह नाम नगरमासीत् , नगरस्य पहिः सुभृमिभाग नाममुद्यान 'तत्य ण' तत्र खलु राजगृहे नगरे धन्यनामा सार्या परिवसतिस्म स कीदृश , 'अड़े' आहयः पहुधन धान्य समृद्ध , तम्य मदानारनी भार्या, सा कि भूता ? अ हीनंपञ्चन्द्रियशरीरा 'जार सवा' इह याकरणादिद ज्ञातव्य ' लक्षण जण गुणोववेया माणुम्माणपणागपडिपुण्णमुजायसवगसुदरगा, ससि सोमा कारा काता पियदसणा मुरूषा 'ति एतानि पदानि यान्यातपूर्वाणि 'तस्स ण तस्य खलु धन्यस्य सार्थवाहस्य पुनाः भद्राया भार्या या 'अत्तया' आत्मजा अङ्गजा-निजकुक्षिसभा इत्ययः चत्वारः सार्थवाहदारका सन् , तद् यथा में (रायगिहे नाम नयरे होत्या ) राजगृह नाम का नगर था (सुभूमिभागे उज्जाणे) वहा घाहिर में एक सुभूमि भाग नाम का उद्यान था। (तत्य ण रायगिहे धणे नाम सत्यवाहे परिचम ) उम राजगृह में धन्य नाम का सार्थवाह रहता था। (अड़े०भद्दा मारिया, अहीण पचे दिय० जाव सुरूवा) यह बहुत अधिक धन घान्य से समृद्ध था। इसकी भद्रानाम की भार्या थी। इसका शरीर अहीन पचेन्द्रियो से परिपूर्ण था। सुन्दर अगवाली थी।" यावत् शब्दसे" लक्खणजण गुगोश्वेया, माणुम्माणपमाण पडिपुषण-सुजाय-सम्यग सुदरगा, ससिसोमोकारा, कता पियदसणा सुरुवा " इस पाठका सग्रह किया गया है कोई बार पहिले इन पदो का अर्थ लिखा जा चुका है । (तस्सण धण्णस्स सत्यवाहस्स पुत्ता भद्दा भारिया अत्तया चत्तारि सत्यवाह दारया होत्था) उस धन्य सार्थवाह के भद्राभायाँ की कुक्षी से उत्पन्न निइपित ज्या छ ( तेण कालेण तेण समपण ) ते णे अन ते सभये (रायगिहे नाम नगरे होत्या ) राड नामे नगर तु (सुभूमिभागे उज्जाणे) नगरनी महा२ सुभूमिमा नाभे से धान तु (तत्थ ण रायगिहे धण्णेनाम सत्थवाहे परिवसइ) नगरमा धन्य नामे साथ वार्ड २डेते डत (अड्ढे भद्दा भारिया अहीण पचेदिय जाव सुरुवा) ते घऐ। २१ धन ધાન્યથી સમૃદ્ધ હતો ભદ્રા નામે તેની પત્ની હતી તેનું શરીર અહીન પચન્દ્રિયથી પરિપૂર્ણ હતુ તે સુ દર અગોવાળી હતી “યાવત” શબ્દથી गडा ( लक्खणजणगुणोववेया, माणु माणरमाणपडिपुण्णसुजायसव गसुदरगा, ससिसोमाकारा, कता पियद सणा सावा ) मा पानी सडथयो छ ! पहाना पडे। घी वयत सस्पष्ट ४२वामा मा०ये। छ ( तस्सण धण्णस्स सत्यवाहस्स पुत्ता भदाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्यवाहदोरया होत्या) धन्य સાથ વાહને ભદ્રા ભાર્યાના ઉદર જન્મ પામેલા ચાર સાર્થવાહ દાર -પત્ર-હતા .
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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