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________________ ૬૪ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे उपगत्य तदाज्ञामीकृत्य हि जनपदविहार कर्तुमित्यर्थ । एव अमुना मका रेण सप्रेक्षन्ते परस्पर पर्यालोचयन्ति, समेय पर्या दोन्य शैलक 'राय' राजान राजर्षिमित्यर्थ उपसपध = उपेत्य तदाशामादाय विहरन्ति ॥ ३४ ॥ मूलम् तपणं सेलए पथगपामोक्खा पंच अणगारसया वहूणि वासाणि सामन्नपरियाग पाउणित्ता जेणेव पोंडरीये पव्त्रए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जहेव यावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा । एवामेव समणाउसो जो अम्ह निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव विहरिस्es | एव खल जंबू । समणेण भगवया महावीरेण जाव संप' तेणं पंचमस्स णायज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्तेत्ति वेमि ॥३५॥ ॥ पचम णायज्झयण समन्त ॥ पहिले कर दी गई है । ( त सेय खलु देवाणुप्पिया । अम्ह सेलय उब सज्जित्ताणं विहरित ) इसलिये हे देवानुप्रियो 'अब हम लोगो को यही उचित-कल्याण कारक मार्ग है कि हम सब उन शैलक राजऋषि की आज्ञा को अगीकार कर बाहर जनपदों में विहार करें। A # ( एव सपेर्हेति ) इस प्रकार उन्होंने विचार किया - (सपेहिता सेलय राय उपसपजित्ताण विहरति ) विचार कर वे सब के सब शैलक राजा - राजऋषि के पास पहुॅचे और उनकी आज्ञा लेकर बिहार करने लगे | सूत्र ॥ ३४ ॥ व्यभ्या पहेला श्वामा भावी छे ( त सेय खलु देवापिया ! अम्ह सेल्य उवसपज्जित्ताण विहरितए) मेथी हे हेवानुप्रियो । અમારા માટે એજ હિતાવહ છે કે અમે બધા તે શૈલક રાજઋષિની આજ્ઞા મેળવીને બહાર ના જનદેમા વિહાર માટે નીકળીએ ( एव सपेहेंति) या प्रभो विचार अर्यो ( सपेहित्ता सेलय राय उपसप जित्ताण विहरति ) विचार पुरीने तेथे मघा शेव रापिनी पासे गया અને તેમની આજ્ઞા મેળવીને વિહાર કરવા લાગ્યા! સૂત્ર “ ૩૪ ” ૫ LC
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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