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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणा टीका अ० ५ शैलकराजमपिचरितनिरूपणम् 1 1 टीका- 'तएण ' इत्यादि - ततस्तदनन्तर पान्थरुवः पञ्चअनगारशतानि=पान्थक रहिताः पञ्चशतमख्यका अनगारा एकोनपञ्चशतसख्यका अनगारा इत्यर्थः । 'इमीसे कहाए' अस्या श्याया व्यवलोपे कर्मण्यधिकरणे चेति वार्तिकेन पञ्चमी । इमा कथामाम्येत्यर्थः । ' लखट्ठा ' व्धार्थाः प्राप्ताभिलपिताः सन्तः अन्नमन्न' अन्योन्य परस्पर ' सहावे ति शब्दयन्ति आह्वयन्ति, शब्दयित्वा = आहूय एव = वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिपुः - शैलको राजर्पिः पान्थकेनानगारेण सार्धं विद् विहरति, अन यावच्छदेन-अव्भुज्जएण पनत्तेण पडिग्गा दिएण जणवयविहार इति पाठस्य संग्रह अस्य व्याख्या मागुक्ता । तत् = तस्मात् श्रेयः खलु हे देवानुप्रियाः अस्माक शैलक शैलकराजर्षिम् ' उवसपज्जित्ता उपसद्य = तएण ते पथगचज्जा ' इत्यादि ॥ 4 टीकार्य - (तरण इसके बाद (ते पथगवज्जा पच अणगारसया इमीसे कहाए लट्ठा समणा अनमन्न सद्दावेंति) वे पाथक वर्ज५००) सौ अनगार अर्थात् ४९९ वे साधु जो शैलक राजऋषि के शिष्य थे जब इस कथा को सुना तो सुनकर अभिलपित अर्थ की प्राप्ति वाले बनकर उन्हो ने आपस में एक दूसरे को बुलाया - ( सद्दावित्ता एव वयासी) बुलाकर इस प्रकार विचार किया - ( सेलए राघरिसी पथएण अणगारेण सद्धिं परिया जाव विहरइ ) शैलक राजऋषि पाथक अनगार के साथ बाहर जनपदों में यावत् विहार कर रहे हैं । १६३ यहा यावत् शब्द से 'अन्भुज्जएण पवन्तेण पडिग्गहिएण जणवय बिहार " इस पाठ का संग्रह किया गया है । इन पदो की व्याख्या ( तण ते पथगवज्जा ) इत्यादि ! टीडार्थ - (तएण ) त्यार बाह (ते पथगवज्जा पच अणगारसया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाना अन्नमन्न सहावेंति ) पाथने माह उश्ता मीन यारसो नवालु રાજઋષિ શૈલના શિષ્યએએ જ્યારે આ ખષી વિગત જાણી ત્યારે ઇચ્છિત અની પ્રાપ્તિની અભિલાષા રાખતા તેઆએ એક બીજાને એક સ્થાને એકઠા यश भाटे मोलाच्या ( सद्दावित्ता एव वयासी ) गोसावीने भेामेा थाने तेथे। विचार श्वा साभ्या, (सेलए रायरिसी पथएण अणगारेण सि बहिया जाव विहरइ ) डे शेस राष्ट्रऋषि पाथ अनगारनी साथै महार જનપદ્મમા વિહાર કરી રહ્યા છે, मडी ने ( यावत् ) शब्द छे तेनाथी ( अभुज्जए ण पवतेण परिग्ग हिएण जगवयविहार ) मा पाउना સગ્રહ થયા છે, આ પાની
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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