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________________ -- - हाताधर्म माने कातिकचातुर्मासिके 'कायकाउस्सगे' कृतमायोत्सर्ग 'देवसिय ' देवसिक प्रतिक्रमण परिक्रान्ता कृतवान् , चातुर्मासिक 'पडिकमिउ कामे' प्रतिक्रमितुकामः शैलक राजर्पि 'खामणट्टयाए 'क्षमापनार्थाय शीर्पण मस्तकेन पादयो सघट्टयति स्पृशति । ततस्तदनन्तर खलु स शैलकः शैलकराजर्षि पान्थकेनन्यान्यकानगारेण शीर्पण पादयो सहितः संस्पृष्टः सन् 'आमुरुत्त 'आशुरुतः मटितिकोपयुक्ता, यावत् क्रोधानलवेगेन 'मिसिमिसेमाणे' मिसमिसन् देदीप्यमानः 'उठेइ ' उत्तिष्ठति, 'उहित्ता' उत्थाय एव-वक्ष्यमाणमकारेण अबादीत् ' से' सः 'केस' एषः एतादृशः कोऽस्ति खल्ल भोः ! 'एस' एप: ' अप्पत्यियपस्थिय ' आर्थितमार्थकः, यावत् परिवर्जितः श्री ही धी रहितः, यः खलु मां पथए कत्तिय चाउम्मासिंयसि कय काउस्सग्गे देवसिय पडिक्कमण पडि ,क्कते चाउम्भासिय पडिक्कामिउकामे सेलय रायरिसि खामणट्टयाए सीसेणं पाएसु स घट्टेइ ) इसी समय पांथक अनगार ने उसी चतुर्मास के कार्तिक महीने में कायोत्सर्ग करके देवसिक प्रतिक्रमण किया। फिर “चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने की इच्छा से उसने शैलक राजऋषि के अपने कृत दोपो की क्षमा याचना निमित्त मस्तक से दोनों चरणों का स्पर्श किया । (तएण से सेलए पथएण सीसेण पाएसुस घटिए समाणे -आसुरूत्ते जाव मिसिमिसे माणे उठेइ ) पायक अनगार के मस्तक से दोनों चरणों में स्पष्ट हुए वे शैलक राजर्षि इकदम कोप से लाल हो -गये । और मिस मिसाते हुए यावत् क्रोधानल के वेग से दे दीप्यमान होते हुए-वे उठकर बैठ गये। (उद्वित्ता एव वयासी) बैठकर इम प्रकार करने लगे- (से केसण मो एस अप्पत्थिय पत्थिए जाव परिव. (तपण से पथए कत्तियचाउम्मासि यसि कयकाउत्सगो देवसिय पडिकमण पडिक्कते चाउग्नासिय पडिस्कामिउकामे सेलय रायरिसि सामणद्वया सीसेण पापसु सघट्टेइ ) मा मते यातुर्मासना ति: भासभा १ ॥५४ मनगारे કાન્સ કરીને દૈવસિક પ્રતિક્રમણ કર્યું ત્યાર પછી ચાતુર્માસિક પ્રતિક્રમણ કરવાની ઈચ્છાથી તેમણે પિત ના ની ક્ષમાપના માટે શૈલક २२ पिना यशभा पाताना मस्ताना २५। यो तएण से सेलए पथएण सीसेण पाएसु सपट्रिएसु समाणे आसुरुत्ते जात्र मिसमिसेमाणे उद्वेइ ) પાથક અનગારના મસ્તકના બે ને પગેમા થયેના સ્પર્શથી શૈલક રાજઋષિ એકદમ લાલ ચેળ થઈ ગયા, અને કોધ ની જવાળામાં સળગતા તેઓ लहान महा २५ गया (उद्वित्ता एव पयासी) 8t न तेमाये ॥ प्रभार
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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