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________________ अनगारघामृतपपिणो टोका अ०५ सुदर्शनश्रेष्ठोवर्णनम् तएणं से सुदसणे सुयेणं परिवायएणं एव वुत्ते समाणे आसणाओ अब्भुटेइ, अभुट्टित्ता करयल० सुयं परिवायगं एव वयासी-एव खलु देवाणुप्पिया । अरिहओ अरिट्ठनेमिस्स अतेवासी थावच्चापुत्ते नाम अणगारे जाव इहमागए इह चेव नीलासोए उजाणे विहरइ, तस्स णं अतिए विणयमूले धम्मे पडिवन्ने ॥ सू० २२ ॥ टीका-तएण इत्यादि-ततस्तदनन्तर खलु तस्य कस्य परिव्राजकस्य 'इमीसे कहाए' अस्याः कथाया. 'लहस्स' लब्धार्यस्य-ज्ञातार्थस्य सतः 'अयमेयारूचे' अपमेतद्रूपः वक्ष्यमाणरूप• 'अज्यथिए' आ यात्मिक आत्मगतोविचारः, यावत् समुदपद्यत प्रादुर्भूतः एव ग्खलु सुदर्शनेन शौचमूल धर्म 'निप्पजहाय' विषजहाय-परित्यज्य विनयमूलो धर्मः 'पडिवन्ने प्रतिपन्नः स्वीकृतः । तत्=तस्मात् श्रेय खलु मम मुदर्शनस्य दृष्टिं दर्शन जिनप्रवचने श्रद्धान 'वामेत्तए' वमयितु त्याजयितु पुनरपि शौचमूलक धर्ममाख्यातुम् , सुदर्शनस्य यद् विनयमूल 'तण्ण तस्स सुयस्स' इत्यादि । टीकार्य-तएण) इसके बाद (तस्स सुयस्स) उस शुक परिव्राजकको जब ( इमीसे कहाए लहस्स समाणस्स) यह ससचार विदित हुआ सुदर्शन से अनणोपासक न गया-यह खबर मिली-तब (अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपज्जित्था) उस के मनमें यह प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ (एच खलु सुदसणेण सोयमूल धम्म विप्पजहाय विणय मृले धम्म पडिवन्ने) सुदर्शन शौच मलक धर्मको परित्याग कर विनयमूलक धर्म कोस्वीकार लिया है , (त से य खलु मम सुदसणस्स दिठिवामेत्तए पुणरवि सोयमूलय धम्मे आधवित्तए) सो अब मुझे 'तएण तस्स सुयस्स ' इत्यादि । टीडा (तएणं ) त्या२ मा (तस्स सुयस्स) शु४ परिना न्यारे ( इमीसे कहाए लद्धट्टरस समाणस्स ) मा पात मामजी सुन ० श्रमपास 25 गया त्यारे ( अयमेवारूवे अझत्थिा जाव समुपज्जित्था) तेना मनमा विया२ २७-(ण्य सलु सुद सणेण सोयमूल धम्म विप्पजहाय विणयमूले धम्मे पहिवन्ने ) सुशन शेडे शीय भूख धर्म त्याने विनय भूव धर्म स्वी आर्या छ ( त सेय सलु मम सुद सणस्स दिवि वामेत्तए पुणरवि सोयमूलय धम्मे आपविचए) तो वे मारे मुशननी विनय भूख धर्म ९५२थी श्रद्धा भटा
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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