SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हाताधर्मकथा मूलम्-तएणं तस्स सुयस्स परिवायगस्स इमीसे कहाए लद्धहस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपजित्था, एव खल्लु सुदसणेणं सोयमूल धम्म विप्पजहाय विणयमूले धम्मे पडिवन्ने, तं सेय खल्ल मम सुदंसणस्त दिद्धि वामेत्तए पुणरवि सोयमूलए धम्मे आघवित्तए तिकटु एव सपेहेइ, सं. पहित्ता परिवायगसहस्सेणंसद्धिं जेणेव सोगधिया नगरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिवायगावसहसि भडनिक्खेव करेइ, करित्ताधाउरत्तवत्थपरिहिए पवि. रलपरिवायगेहि सद्धिं सपरिवुडे परिवायगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सोगंधियाए नयरीए मज्झ मज्झेणं सुदंसणस्त गिहे जेणेव सुदसणे तेणेव उवागच्छइ । तएण से सुदसणे त सुय एजमाण पासइ, पासित्ता नो अब्भुट्टेइ, नो पच्चुग्गच्छइ णो अढाइ नो परियाणाइ नोवदइ तुसिणीए सचिटइ, तएण से सुए परिव्वायए सुदसण अणभुष्ट्रिय० पासित्ता एव वयासी-तुमं णं सुदसणा । अन्नदा मम एजमाण पासित्ता अब्भुट्ठसि जाव वदसि इयाणिसुदसणा। तुम मम एजमाण पासित्ता त कस्स णं तुमे जाव णो वदसि सुदसणा । इमेयारूवे विणयमूले धम्मे पडिवन्ने। ये जीव पुनः उन्ही प्राणातिपातादिको के सेवन से अपनी शुद्धि की कामना कर रहे हैं। सूत्र २१॥ લેપને સગ્રહવામા લીન થયેલા એ જીવે ફરી તેજ પાણાતિપાત વગેરેના सेवनयी पोतानी शुद्धि छे छे ॥ सूत्र “ २१ " ||
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy