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________________ जाताधर्मकथासस कृत्वा शरीरं व्युत्सृजति-परित्यजति, भगवानाह-हे गौतम ! ततस्तदनन्तर खल स दई कालमासे काल कृत्वा यार-सौधर्म कल्पे 'दद्दूर वडिसए विमाणे दर्दुरा यतसके विमाने-दईरदेवतया 'उपान्ने' उपपन्नः-उपपात-जन्म प्राप्त इत्यर्थ । दर्दुरचरितमुक्त्वा भगवान् महावीरः सामी पाह-' एव खलु गोयमा !' इत्यादि । हे गौतम ! एव खलु दर्दुरेण सा दिव्या देवर्द्धि लब्या उपार्जिता माता स्वयत्तीकृताऽभिसमन्यागता-सम्यक सेविता । गौतमः पृच्छति-'दरस्स' इत्यादि । दर्दुरस्य खलु देवस्य हे भदन्त ! फियत् कालपर्यन्त स्थितिः प्रज्ञप्ता ? है कि जिस के प्रति मेरी यह धारणा रहती थी, कि इसे कोई भी रोगा तक स्पर्श न करें उसको भी में अन्तिम श्वासों तक ममत्व भावसे रहित होकर छोडता है। इस प्रकार करके उसने सय का परित्याग कर दिया । (तएण से ददुरे कालमासे काल किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे दगुरवर्डिसए विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववन्ने-एव खलु गोयमा ! ददुरेण सा दिव्या, देविड्डी, लदा, पत्ताअभिसममा गया ) इसके पाद वह दर्दुर काल अवसर काल करके यावत् सौधर्म कल्प में दर्दुरावतसक विमान में उपपोत सभा में दर्दुर देवता की पर्याय से उत्पन्न हो गया। इस प्रकार दर्दुर का चरित्र कहकर भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम से कहा-कि हे गौतम! इस प्रकार से उस दर्दुर देव ने वह दिव्य देवर्द्धि उपार्जित की है, अपने आधीन की है और उसे अपने भोगके योग्य पनाई है। अब गौतम अमण भगवान महावीर स्वामी से पुनः पूछते हैं कि- ददुरस्स ण भते ! देव स्स केवइयकाल ठिईपपणत्ता ? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइ ठिई રેગ અને આતક સ્પર્શ કરે નહિ-તેને પણ હું મમત વગર થઈને છેલી પળ સુધી ત્યજ છુ આ રીતે વિચાર કરીને તેણે બધી વસ્તુઓને ત્યજી દીધી (तरण से दद्दुरे कालमासे काल किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे ददुरबडि सए विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए, उबवन्ने एव खलु गोयमा! दद्दुरेण सा दिव्वा, देविड़ी, लद्धा, पत्ता अभिसमन्नागया ) त्या२मा नसमये आण કરીને યાવતું સૌધર્મક-૫માં દરાવત સક વિમાનમા ઉપપાત સભામાં દર દેવતાના પર્યાયથી ઉત્પન્ન થયો આ રીતે દેડકાના ચરિત્ર વિશે વર્ણન કરીને ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ ગૌતમને કહ્યું કે હે ગૌતમ ! આ રીતે તે દર દેવે તે દિવ્યદેવધિ મેળવી છે, તેને સ્વાધીન બનાવી છે અને તેને પોતે ભોગ વવાને લાયક બનાવી છે હવે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને ગૌતમ ફરી પૂછે छे है (ददुरस्स ण भते ! देवरस फेवइयकाल ठिई पण्णत्ता ? गोयमा / पत्तारि
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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